Friday, 16 December 2016

क्रिसमस कि भावना (true spirit of Christmas)

क्रिसमस कि भावना
लूका 1: 41-55 क्रिसमस क्या है ?
और जकरयाह के घर में जाकर इलीशिबा को नमस्कार किया।
41 ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।
42 और उस ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है।
43 और यह अनुग्रह मुझे कहां से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?
44 और देख ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।
45 और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उस से कही गईं, वे पूरी होंगी।
46 तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करने वाले परमेश्वर से आनन्दित हुई।
48 क्योंकि उस ने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है, इसलिये देखो, अब से सब युग युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
आज हम सभी में एक बहुत बड़ी क्रिसमस की भावना है । कि हमारा पर्व आ गया |
हमें  क्रिसमस की भावना की आवश्यकता क्यों है?
यदि आपने विश्लेषण नही किया है तो हमारे साथ अभी इस के बारे में सोचना शुरू करे
सकि क्रिसमस क्या है ?
क्रिसमस पार्टी,  क्रिसमस के लिए पार्टी का दौर यह भी एक क्रिसमस कि भावना है जो हमें इक्कठा होने के लिए पेरित करता है|
छोटी पार्टी ,बड़ी पार्टी जो कल खत्म हुए ,याद गर है मै भी २० वर्षो से गडन  पार्टी को हमेशा याद करता हु क्योकि हमें एक बड़ा गिफ्ट पैकेट मिलाता था,|यह हमे ख़ुशी देता है|
यही हाल कुछ आमेरिकियो का है,लगभग 95 %से भी ज्यादा लोग कार्ड भेज कर क्रिसमस पर अपनी भावना को व्यक्त करते है एक सर्वे के अनुसार 5 अरब से भी ज्यादा कार्ड भेजते है |
एक प्रकार कि आत्मा और भी है जो शराबकि  बोतल  पर आ जाती है उन्हें लगता है कि क्रिसमस सिर्फ बोतल में है| बोतल ही क्रिसमस है |  
हर एक का अपना द्रष्टि कोण है जो हम अपनी द्रष्टि से सोचते है |
क्रिसमस की सच्ची भावना क्या है? What is true spirit of Christmas?  इस प्रश्न का सबसे अच्छा जवाब बाइबिल से जाने के लिए मैं आपको बाइबिल में आपके के साथ देखना चाहता हूँ
ल्यूक अध्याय 1 और 2 अध्याय है और वहाँ से , हम यह जानेगे  कि क्या क्रिसमस की सच्ची भावना है।
1 आप के लिए स्पष्ट रूप से में, मैं लोगों को और स्वर्गदूतों के बीच मसीह के जन्म के लिए कुछ पदों से स्पष्ट करुगा ।
2 एलिजाबेथ, लूका 1:41,  ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। गर्भ और एलिजाबेथ पवित्र आत्मा से भर गया था और वह एक ज़ोर की आवाज़ के साथ प्रतिक्रिया बाहर हुए  और कहा, 42 और उस ने बड़े शब्द पुकार कर कहा तू स्त्रियों में धन्य हैं और धन्य तेरे गर्भ का फल है। कैसे यह मेरे साथ हुआ है
कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई ? "कि इलीशिबा की प्रतिक्रिया थी और वह बता दिया इसकी वास्तविकता में क्रिसमस की भावना।
लेकिन इससे पहले कि हम कहते हैं कि ल्यूक 1. यहाँ हम में 63  यह एक और घटना कि चर्चा उस के पिता के साथ पद 63जब जकरयाह से पूछा  कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? और उस ने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, कि उसका नाम यूहन्ना है  और  सभों ने अचम्भा किया।
64 तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।
65 और उसके आस पास के सब रहने वालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई।
66 और सब सुनने वालों ने अपने अपने मन में विचार करके कहा, यह बालक कैसा होगा क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था॥
67 और उसका पिता जकरयाह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्ववाणी करने लगा।
उसके पिता, जकारिया पवित्र आत्मा से भर गया था और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।  परमेश्वर यहोवा धन्य है
जकारिया प्रतिक्रिया थी
तब स्वर्गदूत भी यह नहीं छिपा सके कि ख़ुशी कि खबर हम स्वर्ग में ही रखे  
2 लुका  अध्याय 2 :13.  यहाँ हम स्वर्गदूतों के दायरे में देखते 13, कि चरवाहों को अचानक स्वर्गदूतो का एक दल  के साथ दिखाई दिया घोषणा, कि पद 2 :10
तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है।
12 और इस का तुम्हारे लिये यह पता है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।  दूत की प्रतिक्रिया थी
 जब स्वर्गदूत उन के पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।
उन के अंदर यह भावना थी कि क्या हुआ है हम देखे पद 20 और गड़ेरिये जैसा उन से कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए॥

3 शिमोन कि सच्ची भावना पद 2: 25, अद्वितीय व्यक्ति का सफर और देखो, यरूशलेम में शमौन नाम एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति की बाट जोह रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था।
26 और पवित्र आत्मा से उस को चितावनी हुई थी, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख ने लेगा, तक तक मृत्यु को न देखेगा। शिमोन आज मंदिर है,तो सिर्फ इसलिये मसीह के जन्म कि बाट देख रहा था
पवित्र आत्मा के द्वारा उसे पता चला कि वह मौत नहीं देखना होगा जब तक वह प्रभु के मसीह को देखा था। और वह मंदिर में यही  भावना से  आया कि यीशु को देखे
वचन कहता है पद लुका 2 :28 तो उस ने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा,
29 हे स्वामी, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है।
30 क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है।
31 जिसे तू ने सब देशों के लोगों के साम्हने तैयार किया है।
मसीह का जन्म सब के लिया उद्धार मुक्ति का सन्देश सब देश के लोगो के लिए है कोए भी क्यों न हो चाहे इस्रायली यहूदी या अन्यजती सभी के लिए है
"एक अन्यजाति कि मसीह जन्म कि भावना को बताती है,
पद 2:36 और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नाम फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन थी: वह बहुत बूढ़ी थी और ब्याह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी।
37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।
38 और वह उस घड़ी वहां आकर प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभों से, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी।
एक बड़ी औरत जो असेरा  के गोत्र की बेटी की प्रतिक्रिया है,
सात साल उसकी शादी के बाद और फिर 84 साल की उम्र में एक विधवा के रूप में एक पति के साथ रहते थे।
वह कभी नहीं छोड़ा मंदिर उपवास और प्रार्थना के साथ रात-दिन कार्य किया। उसी क्षण वह परमेश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया, उन सभी के लिए उसके बारे में बात करने के लिए जारी रखा है जो देख रहे थे वे बाते जो
एलिजाबेथ, जकारिया, स्वर्गदूत ,एलिजाबेथ, मरियम, अब शिमोन "पवित्र आत्मा उस पर था और यह किया गया था यरूशलेम के छुटकारे के लिए।
यह ऐसा संदेसा है जो छिपाने से छिपाने का नही है
मरियम एलिजाबेथ, जकारिया, स्वर्गदूतों,  शिमोन, हान्ना, स्वर्गदूतों, चरवाहों मूल रूप से एक प्रतिक्रिया थी। और कहा कि एक प्रतिक्रिया क्रिसमस की भावना है और सही शब्द आराधना है। आराधना करते हैं। पहले क्रिसमस में उन सभी ने  क्रिसमस की भावना की प्रशंसा और धन्यवाद किया गया एक शब्द में हम कहे परमेश्वर की महिमा, की है।
और मत्ती 2: 2, अभी तो हम कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण लोगों को बाहर छोड़ नहीं सकते है,
हमें उन पण्डितों को जो 2 कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उस को प्रणाम करने आए हैं
एक ही मकसद था आराधना करना
हर कोई आराधना कर रहा था।
तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
उस ने बड़े शब्द पुकार कर कहा तू स्त्रियों में धन्य हैं और धन्य अपने गर्भ का फल है।
तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।
तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए॥
हे स्वामी, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है।  क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है।
यही कारण है कि क्रिसमस की भावना है।
हालांकि हेरोदेस एक झूठ कहा था कि वह उचित समझ में किया था रवैया आराधना करने के लिए। यह तो क्रिसमस के सर्वोच्च रवैया है।
इस की भावना है
क्रिसमस और यह मासिहयो के लिए आराधना का सर्वोच्च समय के रूप में, हम अपने उद्धारकर्ता के जन्म का जश्न मनाने है।
हर समय की इस बार आराधना का समय है। यह आराधना का एक दृष्टिकोण है।  एक भावना है।  यह दिल का रवैया इसलिए आश्चर्य और से भर जाता है वह यह है कि
क्या परमेश्वर से किया गया है हमारी  भावना यह है, दिल से, हम सभी के दिलो में आज मसीह का जन्म हो और हम उसकी स्तुति महिमा का  धन्यवाद कर सके |

Wednesday, 7 December 2016

ञुतरे झालकाव कान इपिल santhali song

1               ञुतरे झालकाव कान इपिल, जोतो होड़ एभेन कोम
           दूत कोवाक जायजुग सेरेञ , दे आंजोम ओचोकोम
           ओनको हों दुतको तुलुच , जेमोन को सेरेन मा
           चोट उतर रे ईसोराक महिमा होयोक मा l

कोरस : ञुतरे झालकाव कान इपिल, निरैयक आ मेनते
             सुलूक  रेन राजा ठेन गे देसे आयुर लेमे l 
             एन्डे खान सेरमा दुतको आरहोको सेरेञl
           चट उतररे ईसोराक् महिमा होयोक् मा l

2                               ञुतरे झालकाव कान इपिल , बेबुज मानवा को दे
           सारी सुक ञामजोंग लागित् , होर उदुक् आकोमे l 
          मिमित् दिसोम रेन होड़को बेथलेहम नाद्वा ठेन
           जीसू को सेवाआयमा प्रभु सानामको रेन l    

Monday, 14 November 2016

Do not judge matt 7:1-2 (Hindi ) दोष मत लगाओ


दोष
सुसमाचार के अनुसार यह विषय दो स्थानों पर मिलता है
दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जाये | लुका 6:37 -38,मती का सुसमाचार 7 :1-2
यह दोष का लगने कि क्रिया ,इंसान में स्वभाव से है| यह आदम से हम तक पहुची है |यह बड़ा प्रश्न और चेतावनी भी है ? इसलिए हम इसके लाभ और हानि पर विचार कर सकते है |
यह दोष लगाने की क्रिया हम इंसान के स्वभाव में है|इसलिये हम बिना विचार के हम किसी के विरुद्ध कुछ भी बोला देते है,जो भी हम अपने विचार आया कह देते है |जिससे हमे फायदा होना चाहिये |
बूमरेंग 
यह शिकार करने का हथियार है,जिससे प्राचीन कल में लोग शिकार में इस्तेमाल करते थे,जिसे मनुष्य एक स्थान से फेक कर प्रयोग करते थे,इसे जैसे हम फेकते है यह वैसे ही वापस अपने स्थान पर आता है |आज यही वचन हमे से स्पष्ट रीति से कहता है (बाइबिल मति 7 :1-2) दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जायेक्योकि जिस प्रकार तुम दोष लगते हो ,उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाये और जिस नाप से तुम नापते हो ,उसी नाप से तुम्हारे लिए नापा जायगा,यही है बूमरेंग कि प्रकिर्या है |
कुछ लोग हमेशा दूसरो मै दोष खोजते रहते है उन्हें अच्छे गुण दिखाई ही नही देते है और हमेशा कुछ न कुछ कहते ही रहते है ऐसा कह कर वे अपने सहकर्मी के साथ ,परमेश्वर कि द्रष्टि में भी दोषी और न्याय के भागी ठहराते है | जब एक ऐसा व्यक्ति ,जो दूसरो में दोष देखता है तो वह ऐसा करके ,वह अपने दोषो कि ओर ध्यान खिचता है |ऐसे दोष जो स्वम उन्हें नही देखा सकता है मति 7: 5 हें कपटी पहले अपनी आँख का लटठा निकाल ले तब तू अपने भाई की आँख तिनका निकला सकेगा | दोष लगाने के कार्य में सबसे पहले सुसमाचार से जुड़े लोग ही ऐसा कार्य में आगे है |पादरी और प्रचारक अपने कार्य में समुदाय से मिलते ही एक दुसरे पर दोष लगा कर अपनी प्रतिष्ठा को बड़ते है |उन्हें ऐसा लगता है ,कि हमारा कार्य सबसे अच्छे है परन्तु वे अपने लक्ष्य को भूल जाते है |
इस प्रकार यीशु मसीह अपने चेलो को एक सच्चा न्याय करना सिखाना चाहते थे यदि वे दूसरो के शिक्षक बनाना चाहते है|यदि चेलो को इस समझ नही हुई तो वे अंधे होकर, दुसरे को कैसेमार्ग दिखायागे | इस विपरीत हम दूसरो मै दोष निकला कर उन्हें पथ भ्रष्ट नहीं कर देगे |यह दोष निकालने का तरीका गलत है “ झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा।नीतिवचन 19:5 ‘’ इसलिये हमे दोष लगाने में ,न्याय बचाना चाहिए मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ॥ यहुन्ना 7:24
1.उपरी तौर से न्याय (Superficial judgment)
लुका 7:36 -39 किसी फरीसी ने उस से बिनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा।
37 और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई।
38 और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बारबार चूमकर उन पर इत्र मला।
39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिनी है।इस घटना से लोग मन मै सोच कर न्याय कर रहे है यह न्याय नहीं है |
2 पाखंडी न्याय ( Hypocritical judgment )
रोमियो कि पत्री 2:1-2 हे दोष लगाने वाले, तू कोई क्यों न हो; तू निरुत्तर है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिये कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।  और हम जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करने वालों पर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3.क्षमा रहित न्याय (Unforgiving judgment)
बाइबिल कहती है कि न्याय क्षमा के बिना अधुरा है  मति 5 :6  धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। न्याय दया के साथ हो,इस के विपरीत तीतुसहमे एक व्यवहारिक सलाह भी देता कि हम  किसी को बदनाम न करें; झगडालू न हों: पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें। तीतुस 3:2
4.स्वम सोच न्याय (Self righteous judgment)
जब न्याय कि बात हो तो ,हम अपनी सोच से नही सोचे कि उस परिपेच्छ में सोचे कि वंहा हमारा अभिमान (घमंड )कार्य तो नही कर रहा है |इसलिये याकूब ने अपनी पत्री में लिखा है ,याकूब 4:6    वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। जैसेअनुग्रह  हमें मिला है वैसे ही हम दूसरो के साथ करे |
5.आसत्य न्याय (Unture Judgment ) 
जो सत्य नही और हम जानते भी नही है तब हमारी प्रतिक्रिया शांत होना चाहिए ,व्यावहारिक नियम यही कहता है कि हम शांत रहे |परमेश्वर का वचन कहता है
नीतिवचन वचन 18 :5 दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है।
मार्गदर्शन के लिए कारण है 
जब हम दूसरो पर दोष लगते है तो हमे अपने आप को जचने कि आवश्कता है कि हुम उसे नही पर अपने आप को देखे |
दोषों के कारण हम लोगो कि सरहना नही कर सकते परन्तु एक दोष के करण लाखो अच्छाईयो  को अनदेखा भी नही कर सकते है |
दोष देखने कि आदत के कारण हमारी उन्नति रुक जाती क्यों ?हुम हर समय अपने न्याय और इच्छा को सर्वोतम मानते है और दुसरे को दोषी ठहरा कर अपने लिए दुःख और निराशा मुफ्त में उठा लेते हें उसी के साथ संघर्ष करते रहते  ,हम अपनी उन्नति को नही देखते है |
हम दूसरो के दोष के कारण अपने को दुखी बनाते है |
हे भाइयों, एक दूसरे की बदनामी न करो, जो अपने भाई की बदनामी करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है; और यदि तू व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलने वाला नहीं, पर उस पर हाकिम ठहरा। याकूब 4:11

Tuesday, 20 September 2016

Soul to Poul life

3 मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बाप दादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
4 और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनों को बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंथ को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला।
5 इस बात के लिये महायाजक और सब पुरिनये गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहां हों उन्हें भी दण्ड दिलाने के लिये बान्धकर यरूशलेम में लाऊं।
6 जब मैं चलते चलते दमिश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?
8 उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है।
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता था उसका शब्द न सुना।
10 तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा।
11 जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 और हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहने वाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया।
13 और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं  ।
14 तब उस ने कहा; हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने।
15 क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने उन बातों का गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं।
16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।
17 जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया।
18 और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।
19 मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करने वालों को बन्दीगृह में डालता जगह जगह आराधनालय में पिटवाता था।
20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाया जा रहा था तब मैं भी वहां खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके घातकों के कपड़ों की रखवाली करता था।
इस महीने में हम बाइबिल के महान योद्धा के जीवन पर विचार कर रहे है इसी श्रृंखला में
आज हम शाऊल के जीवन पर विचार करेगे कि वह कौन है ? उसका जीवन कैसा था,उसकी शिक्षा और पारिवारिक सिथति ? ओए हम प्रेरित पौलुस के जीवन से क्या क्या सीख सकते हैं?
साधारण से पौलुस ने परमेश्वर के राज्य के लिए असाधारण काम किया   पॉल की कहानी यीशु मसीह के द्वारा पुरे उद्धार की एक कहानी है यह एक  सच्ची गवाही है| कि कोई भी परमेश्वर की कृपा से परे नहीं है।
शाऊल ने अपनी गवाही में हमें बड़े ही साफ रीति से कहा है| में किलकिया के तरसुस में जन्मा यहूदी मनुष्य हूँ | यह जगह वर्त्तमान में तुर्की में है,जो रोमन समाराज्य का हिस्सा था इसलिए पौल को जन्मा से रोमन नागरिकता मिली थी या कारण यहूदी होते हुए भी वह रोमन नागरिक था|
शाऊल के मातापिता यहूदी जाति के बिन्यामिन गोत्र से है, यहूदी लोग अपने परमेश्वर कि आज्ञा पालन करने वाले एव उस पर चलने वाले और अपने बच्चो को परमेश्वर के वचन कि शिक्षा देने कोइ कमी नहीं छोड़ते है| क्योकि परमेश्वर कि आज्ञा है
व्यबस्था विवरण 4:9-10
9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उन को भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।
10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा था, कि उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं।
इसलिए यहूदी लोग धर्म कि रक्षा के लिय, धर्म के कानून का  पालन बड़ी सकती से करते है
क्योकि उन्होंने सिखा था कि परमेश्वर कि आज्ञा ना मानाने का फल क्या होता है ४०० साल कि बन्दुबाई के  दुःख को  देखा था नाबोकद्नेसर का आत्यचार सह था कि यह सब आज्ञा ना मानाने के कारण हुआ था |
इसलिए तेरह साल की उम्र में शाऊल को फिलिस्तीन को भेजा गया जंहा गम्लीएल नाम के एक रब्बी ने  शाऊल को यहूदी इतिहास, भजन और नबियों के कामों और व्यबस्था को जानने के लिए अवसर मिला, उनकी शिक्षा के लिए पांच या छह साल का समय में ऐसी बातें सीखा होगा।और प्राचीन काल में शिक्षा का स्वरूप  सवाल और जवाब कि शैली के रूप में विकसित किया गया था| वह यह उस का "अभियोगात्मक भाषण।" यह अभिव्यक्ति का यह तरीका rabbis यहूदी कानून की बारीकियों पर बहस,या तो धर्म रक्षा या जो लोग कानून तोड़ दिया पर मुकदमा चलाने में मदद हो । शाऊल में यही गुण पूरी तरीके से विधमान था ,कि वह एक आच्छे, एक वकील बनने के लिए, और सभी संकेतों और 70पुरनियो कि महासभा, पुरुषों के लिए जो यहूदी जीवन और धर्म पर शासन करने और यहूदी सुप्रीम कोर्ट का सदस्य बनने की ओर इशारा करता है ।
ऐसा विश्वास जो समझौता करने के लिए अनुमति नहीं देता है । शाऊल अपने विश्वास के लिए पूरे जोश के साथ था, और यह एक ऐसा उत्साह है जो धार्मिक कट्टारपंथी (उग्रवाद) के रास्ते पर  शाऊल का नेतृत्व करता है।
गम्लीएल कौन है ?
गम्लीएल एक फरीसी रब्बी ( गुरु )है जो यहूदी  गम्लीएल यहूदी कानून का जानकर और एक फरीसी चिकित्सक के रूप में मान्यता प्राप्त है प्रेरितों 5 के 34 में एक आदमी, वणर्न है जो सभी यहूदियों, को यीशु के प्रेरित कि निंदा नहीं करने के लिए बात की थी वह मह्सभा में गम्लीएल ही बोलता है, और यन्ही को पॉल  यहूदी शिक्षक के रूप में बताता है  प्रेरित:22:3
 1 शताब्दी ईस्वी में महासभा में एक अग्रणी अधिकार था। कि शिमोन बेन हिल्लेल का पुत्र है, और महान यहूदी शिक्षक Hillel एल्डर का पोता था, जो यरूशलेम (70 ई) में दूसरा मंदिर के विनाश से पहले बीस साल निधन हो गया।
जोश के साथ ---विश्वाश के साथ
यही शिक्षा के कुछ कारण है कि
1.शाऊल स्टीफन की सुनवाई में उपस्थित हुआ और उसके पथराव और मौत के लिए मौजूद गवाह बना था  07:58 – 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े उतार रखे।
2-5: 39 -42, परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
40 तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
यह सब को देख कर शाउल का जोश, अपनी सीमा से ज्यादा हो गया था वह
परमेश्वर के नाम पर अपने धर्म कि रक्षा के लिए , शाऊल ईसाइयों की खोज में अधिक क्रूर हो गया।  एक धार्मिक आतंकवादी की तुलना में अधिक शातिर खासकर जब उनका मानना है कि वह निर्दोष लोगों की हत्या करके प्रभु की इच्छा पूरी कर रहा है।
8: 3 शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर घर घुसकर पुरूषों और स्त्रियों को घसीट घसीट कर बन्दीगृह में डालता था॥
परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था ऐसा जोश था कि वह जो कर रह है वह सब परमेश्वर के कर रहे है यह सोच शाऊल कि थी ,जब कि यह सोच सच्चाई से परे है | इस लिए वह तेजी से यरूशलेम के बाद आस पास के स्थानों में ,गाँव में और दुसरे शहरों में भी शाउल मसीहियो को मार रहा था |इसलिए उसने महायाजक से  चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, जो यरूशलेम से दमिश्क को  150 मील की दुरी पर , सड़क पर यीशु मसीह के साथ  शाऊल की मुडभेड यीसू से होती है आध्याय 9 यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले, वह दमिश्क में सभाओं को पत्र के लिए महापुरोहित  से पूछा था, किसी भी ईसाइयों को पीटने मरने के लिए अनुमति पत्र दे शाउल हर काम को तरीके से करता है मसीह को मरता तो भी वह पत्र लेकर जाता है    क्योकि वह धर्म रक्षक है और उन्हें यरूशलेम में कैदकर सजा देने के लिया आ रहा है ।
कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: र यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?  हे प्रभु, तू कौन है?
में यीशु हूँ
यह शाउल कि ,यीशु के साथ शाऊल की पहली मुठभेड़ नहीं हो सकती है,
जैसा कि कुछ विद्वानों का मत  है कि युवा शाऊल, यीशु के नाम को जानता है ,हो सकता है और यही भी हो सकता है कि वह यीसू कि म्रत्यु का गवाह हो सकता है
इसएक ही पल में , शाऊल का जीवन उल्टा हो गया था। एक बलवान पुरुष जिस के पास बल है,शक्ति है|फिर भी आज यीशु सामने निर्बल दिखाई देते है |शाउल को भी आज मालूम हुआ कि मेरे काम सब मैले चिथड़ो के सामना है इन सब का कोईं मोल नही है उसके राज्य सब बेकार है हम ही प्रभु के सामने वेसे ही हें,हम भी कुछ भी करे हमरे सबसे अच्छे काम  में यीसू नही तो सब बेकार है |
 प्रभु के प्रकाश ने  उसे अंधा, कर दिया और जैसा कि उन्होंने कहा कि वह यात्रा के लिए उसके साथीयो पर निर्भर होना पड़ा। यीशु ने आदेश दिए हैं, कि शाऊल दमिश्क को जा रखा है जो तुझे करना है वह कहा जायेगा |
तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ? What shall I do, LORD?
इस  का उतर है यहुन्ना 6 : 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो। उस पर विश्वाश  किया
पहली बार वह एक दुष्ट आदमी के रूप में शाऊल को अपनी प्रतिष्ठा का पता चला था तब यीशु ने आदेश दिया
परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्त्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है।
16 और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा।
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।
18 और तुरन्त उस की आंखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; फिर भोजन कर के बल पाया॥  कि हनन्याह नाम के एक आदमी के साथ संपर्क बनाने के लिए। लेकिन प्रभु ने  हनन्याह को बताया कि शाऊल को मैने  "चुना है " कि गैर-यहूदियों, राजाओं और इसराइल (9:15) के बच्चों से पहले उसका नाम ले जाने के लिए और इतने (9:16)उसे कितने दुःख उठने पड़ेगे  हनन्याह ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन किया है और
वही जोश के साथ वचन में लिखा है ---
शाऊल, जिस पर वह हाथ रखे पाया, और उसे यीशु मसीह के उनके सपने के बारे में बताया। प्रार्थना के माध्यम से, शाऊल, पवित्र आत्मा (V.17) प्राप्त उसकी दृष्टि पाया आ गया और बपतिस्मा दिया गया था (v.18)। शाऊल ने तुरंत सभाओं यीशु का प्रचारकर और कह रही है वह परमेश्वर के पुत्र (v.20) में चला गया है। शाऊल की प्रतिष्ठा को अच्छी तरह से जाना जाता था और लोग, हैरानी  और उलझन में थे। यहूदियों ने सोचा कि वह ईसाई (v.21)को  दूर लेने के लिए आया था। आज खुद मसीह का हो गया है शाऊल का साहस वृद्धि के लिए  में दमिश्क में रहने वाले यहूदियों साबित करना है कि यीशु मसीह (ने v.22) था शाऊल के तर्कों से चकित थे। पौल अपनी गवाही में गलतियों कों लिखा 1:१२-१४
12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13 यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था।
14 और अपने बहुत से जाति वालों से जो मेरी अवस्था के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता था और अपने बाप दादों के व्यवहारों में बहुत ही उत्तेजित था।
( acts 13: 9) इस परिवर्तन के बाद  शाऊल  के पॉल के रूप में जाना गया। पॉल अरब, दमिश्क, यरूशलेम, सीरिया और अपने पैतृक किलिकिया में समय बिताया है, और बरनबास अन्ताकिया में चर्च में उन लोगों को सिखाने के लिए उसकी मदद ली 11:25)। दिलचस्प है, शाऊल ने फिलिस्तीन के बाहर संचालित इस बहुजातीय चर्च की स्थापना (11: 19-21)। पॉल देर से 40 ईस्वी पॉल नए नियम कि पुस्तकों के कई लिखा में ,तीन मिशनरी यात्रा के अपने पहले ले लिया। अधिकांश
किताबे है
1 और 2 कोरिंथियंस,
 गलतियों,
 फिलिप्पियों
, 1 और 2 थिस्सलुनीकियों,
फिलेमोन,
इफिसियों,
 कुलुस्सियों,
 1 और 2 तीमुथियुस
 टाइटस
 और लिखा था। इन 13 "पत्र" (किताबें) उच्य कोटि कि साहित्य " के लिए और अपने धर्मशास्त्र के प्राथमिक स्रोत हैं। जैसा कि पहले उल्लेख, प्रेरित के काम  की पुस्तक से  हमें पौलुस के जीवन और समय पर एक ऐतिहासिक कार्य दिखाई  देता है। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन का एक भाग रोम ओर दुनिया भर में मसीह यीशु का प्रचार, और  महान व्यक्तिगत जोखिम (2 कुरिन्थियों 11: 24-27) पर किया । यह माना जाता है कि पॉल रोम में  60 ईस्वी में एक शहीद की मौत मर गया। में एक बात और बातदू रोम   कि चर्च कि नीव पौल के द्वारा ही पड़ी इस बात का प्रमाण बाइबिल में मिलाता है 28:30 और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा॥
इसलिये पौल हमे सबसे उतम सलाह देता है  
10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे॥
12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
"(फिलिप्पियों 1: 12-14
एक और जोश कि गवाही पौल 2 ११ :22  कुरिथियो देता है
22 क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ इस्त्राएली हैं? मैं भी हूँ:क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं ?मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं?
23 (मैं पागल की नाईं कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं!अधिक परिश्रम करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार बार मृत्यु के जोखिमों में।
24 पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25 तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र मेंकाटा।
26 मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में;
27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28 और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है।
29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?
30 यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर करूंगा।
31 प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता।
प्रश्न है ?
आज हम पौल के जीवन से सिखा सकते है
परमेश्वर किसी को भी कभी भी बुला सकता है
कि हम केसे भी हो यीशु के राज्य के योग्य हो सकते है
हमे उसके राज्य के लिए अभिषेक मिला है कोए यह नही कह सकता है कि हम ने अभिषेक प्राप्त नही किया है
परमेश्वर के राज्य के लिए हमारा जोश ही हमरी गवाही है

Saturday, 20 August 2016

जलन- ईर्ष्या ( पाप ),jealous sin

जलन ईर्ष्या ( पाप )

जलन ईर्ष्या एक प्रतिदंदी भावना है |कि मै  ही सबसे श्रेष्ट हुँ| इसे इस प्रकार कह सकते है |यह एक अविश्वास या डर से पैदा हुई बैचेनी है ,जो सह नहीं सकती | बाइबिल कहती है, कि प्रतिज्ञा का परमेश्वर है वह हमारा पूरा ध्यान रखता है|   ईर्ष्या से हम अपने आप को ही दुःख देते है, न कि दूसरो को | उन लोगों के सामने खुश रहिये जो आपको पसंद नहीं करते। यह उन्हें जलाने के लिए काफी है ।   शांत रहिये और मुस्कुराते रहिये ! यह काफी है आपसे जलने वालों को और जलाने के लिए !
“एक समझदार व्यक्ति वह है, जो दूसरों के गुणों और विशेषताओं को देखता है, उनसे सीखता है ! न की दूसरों से…
ईर्ष्या (लैटिन, Invidia), लालच और वासना की तरह, एक लालची इच्छा की विशेषता है। यह लक्षण या किसी और की संपत्ति की दिशा में एक दु: खी या नाराजगी लोभ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह गुमान से उठता है, और अपने पड़ोसी से, एक आदमी को
दुर्भावनापूर्ण ईर्ष्या है कि वे दोनों में से  लक्षण, स्थिति, योग्यता, या पुरस्कार के प्रति असंतोष कि भावना महसूस हो  यही  ईर्ष्या  है। एक फर्क है कि ईर्ष्या भी एक मह्त्कछि इच्छा और यह एक लालच जैसी  है। ईर्ष्या सीधे दस आज्ञा से संबंधित हो सकती  है, विशेष रूप से, "न तो  लालच करना  ... कुछ भी है कि अपने पड़ोसी के अंतर्गत आता है।" (एक बयान यह भी है कि लालच से संबंधित हो सकता है)। डांटे 'के रूप में एक उनकी अन्य पुरुषों से वंचित करने की इच्छा "ईर्ष्या को  परिभाषित किया। ईर्ष्या की घाटी में, ईर्ष्या के लिए सजा उनकी आँखों सिलना ,तार के साथ बंद क्योंकि वे दूसरों के लिए  देखने से पाप कि  खुशी प्राप्त की है।
 सेंट थामस एक्विनास के अनुसार, संघर्ष ईर्ष्या से जगाये  तीन चरण हैं:
1पहले चरण के दौरान, ईर्ष्या व्यक्ति दूसरे कि  प्रतिष्ठा को  कम करने के लिए प्रयास करता है; मध्यम चरण में, ईर्ष्या व्यक्ति को  प्राप्त करता है या तो "दूसरे के दुर्भाग्य पर खुशी" (अगर वह विफल रहता है)
2 "दूसरे की समृद्धि पर दु:ख" या (वह दूसरे व्यक्ति को बदनाम करने में सफल होता है); क्योंकि "दु: ख का कारण बनता घृणा" शब्द, घृणा है।
3 ईर्ष्या, पीछे कैन ने अपने भाई, हाबिल की हत्या प्रेरणा होने के लिए कहा जाता है के रूप कैन एबल डाह करते थे, और खत्म हो चुका है हाबिल के बलिदान का समर्थन किया।
किसी  ने कहा है , कि ईर्ष्या दुख का सबसे शक्तिशाली कारणों में से एक है  जबकि उन्हें दूसरों पर दण्ड से आग्रह करता हूं देने के लिए  ईर्ष्या  को दु: ख लाने वाला है।
सबसे व्यापक रूप से स्वीकार विचारों के अनुसार, केवल गर्व ,आत्मा के मध्य  पापों के बीच ईर्ष्या से भी अधिक नीचे होता है। बस गौरव की तरह, ईर्ष्या शैतान के साथ सीधे संबद्ध किया गया है, राज्यों के लिए:। "शैतान की ईर्ष्या दुनिया के लिए मौत लायी ,"

Monday, 1 August 2016

Young Jesus in Temple Luke 2:42-52 (Hindi )


बारह वर्ष का यीशु मंदिर में 
लुका 2 :४२-52
42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए।
43 और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे।
44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे।
45 पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए।
46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया।
47 और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे।
48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।
49 उस ने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?
50 परन्तु जो बात उस ने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा।
51 तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं॥
52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया॥

आज यीशु मंदिर क्यों ?
1 पापियों के उद्धार के लिये
2 व्यवस्था को पूरा करने के लिये
3 मार्गदर्शन के लिये

1 पापियों के उद्धार के लिये 
Luke 5:32 मैं धमिर्यों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूं।
2 व्यवस्था को पूरा करने के लिये 
मत्ती 5:17-18 18 लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
19 इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
आज मंदिर मे यीशु शात्रियो से चर्चा कर  रहे हे |तो यह  पर एक वचन पूरा होता हे,यह दो आज्ञा एक पूरी होती हें
 तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना॥ 
 तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना। 
व्यवस्था कि बात आते ही मेरे मन में आया कि व्यवस्था कौनसी हें ? यह वे  दस आज्ञाऐ  है जो परमेश्वर ने सिनैया पर्वत पर मूसा को ,पत्थर कि पट्टी पर लिखा कर दि थी जिसे मूसा दोनों हाथों में लिये हुआ लौटा था |एक हाथ  में पांच ,दुसरे  हाथ  पांच यही व्यवस्था हम सब के लिया है | चाहे हम कोई क्यों ना हो |हमारे लिए यही व्यवस्था हें |
यीशु ने मानुष रूप आकर इन सारी बातो पूरा किया,कि  हम उसका अनुश्रण कर सके |हम व्यवस्था की बातो को पूरा करने के लिए चल सके |रोमियो की पत्रि ३ :३१ कहता हे की हम व्यवस्था के द्वारा स्थिर होते हे जब स्थिर होज़े तो चलेगे भी |
यह बात को यहोशु ने इसरयालियो को आपने जीवन के आखरी दिन मे कही थी
Book of Joshua  1:7-8 इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ हो कर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बांए, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सफल होगा।
8 व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।
मेरा आज का सन्देश जवानो के लिये है |मे बताना चाहता हु, कुशल का मार्ग क्या है ?
नीतिवचन 3:1-18
1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा।
3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उन को अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना।
4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा॥
5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।
6 उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।
8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियां पुष्ट रहेंगी।
9 अपनी संपत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डोंसे नया दाखमधु उमण्डता रहेगा॥
11 हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना,
12 क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उस को डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है॥
13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,
14 क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है।
15 वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।
16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है।
17 उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उस को पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं॥
16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है।

1  आज्ञाओं को -अपने हृदय में रखे से
आयु में वृधि होती है ,कुशल का मार्ग तेयार  होता हें |
2 - परमेश्वर का भय मानना से - चंगाई प्राप्त होती हें ,शारीर मजबूत होता हें -बुदिमान प्राप्त होती हें |
3 - बुद्धि से धन कि प्राप्ति होती हें |यानि
आज्ञाओं का पालन करो और आशीष पाओ, दोनों हाथो बटोरो लम्बी आयु के साथ धन और महिमा साथ |

मंदिर जाने के कुछ फायदे हें |

1 जब हम मंदिर  जाते है ,तो प्राथना  करते है, और आशीष कि खोज करते है |हम हर तरीके से परमेश्वर को आदर करते है,कि हमारी इच्छा की पुर्ति हो ,इसलिए हम अपने सिर को झुकते है |
2 परमेश्वर के पास बैठने से हम शान्ति का अनुभव करते हए और हम में  पूरी ताजगी  आ जाती  है | कितना ही दुःख क्यों न हो,यही दिल -दिमाग आराम मिलता है |
3 यदि हम मंदिर  कि बनाबट देखे इस कि छत ऊपर से निचे कि ओर होती है ,और इसी जगह पर आवाज इतनी मधुर हो जाती है कि हर एक शन्ति से सुनते है | यही शांति से पॉजिटिव एनर्जी मिलती है |
4 चर्च में हमेशा पॉजिटिव एनर्जी मिलती है,इससे ऐसा अनुभव होता है कि हमारी सफलता कि हमारे पास है |
और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा॥
3 मार्गदर्शन के लिये
John 14:6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं;

Saturday, 16 July 2016

Amen ,meaning of amen (Hindi )


आमेन 
शब्द परिचय-सदीयो से प्रार्थना में ज्यादा से ज्यादा आमेन शब्द का प्रयोग होता हैं। पुराने नियम और नया नियम में इस का प्रयोग देख सकते हैं। इस शब्द का मूल अर्थ समझना जरूरी है। भाषा  विद्वानो का मानना हैं। कि यह शब्द हिब्रू अमन  शब्द का मूल शब्द हैं। सस्कृंत भाषा में ओम शब्द का भी इससे सम्बध हैं। यूनानी भाषा मे इस शब्द का प्रयोग अमेन और इगलिष आमेन में इसके दो प्रयोग होते हैं।

आमेन शब्द का अर्थ है सचमुच ऐसा ही हो। एक व्यक्ति की बात को सही मनाने के लिए अन्य व्यक्ति आमेन प्रस्तुत करता हैं। इस का अर्थ हैं विष्वास और सत्य हैं। इस पृष्टभूमि में विस्वाश  के साथ घोषणा करना हैं। आमेन

बाइबल में आमेन शब्द का पहला प्रयोग गिनती 5 :22में मिलता हैं। व्यभिचारी होने की शंका से एक स्त्री पुरोहित के पास लाई जाये और उसे पथ भ्रष्ट और अपवित्र नही,सबित के लिए कडवा जल पिलाने  के लिए देते हैं और पुरोहित के शाप वचन के उतर के रूप में स्त्री को आमेन कहना पडता हैं। सत्य को सबित करने के लिए स्त्री सहमति देती हैं और घोषणा करती हैं इस का अर्थ हैं। पवित्र ग्रथं बाइबल में अतिंम वचनों आमेन नजर आता हैं। प्रकासित वाक्य 22:20-21 
20 यीशु जो इन बातों का साक्षी है, वह कहता है, “हाँ! मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ।”
आमीन। हे प्रभु यीशु आ!
21 प्रभु यीशु का अनुग्रह सबके साथ रहे! आमीन।
                        
नहेम्याह और एज्रा की भव्यिषवाणी के उतर में लोगो ने आमेन कहा उन्होने आमेन कह कर यह सहमति दी, कि ठीक हैं  एज्रा 10:1-2। नये नियम में आमेन शब्द का अर्थ और गहरा हो जाता हैं । प्रकषितवाक्य 3:14 यह यीशु  मसीह आपने को विष्वाश योग्य और सच्चा गवाह हैं। परमेष्वर की सृश्टि का मूल कारण हैं का विष्लेष्ण दे चुके हैं। पौलुस रोमियो की पत्री में 5 बार इसका प्रयोग करता हैं।

नया नियम में आमेन शब्द का सबसे मुख्य प्रयोग स्वंय यीशु  मसीह ने किया। मती के सुसमाचार में 33 बार आमेन शब्द का और मरकुस के सुसमाचार में 16 बार लूका का सुसमाचार में 8 बार यहून्ना का सुसमाचार में 26 बार आमेन शब्द का प्रयोग यीशु  मसीह ने किया। जब वे आमेन शब्द का प्रयोग करते हैं इसका अर्थ अलग संदर्भ में हैं। यीशु  मसीह जो कहते हैं वह ईश्वारी अधिकार से कहता हैं। इसे सबित करने के लिए आमेन कहते हैं। कभी एक बार और कभी दो बार कहते हैं। इस से ईष्वरीय अधिकार दिखता हैं।


हम अपनी प्रार्थना में आमेन शब्द का प्रयोग यीशु  के द्वारा प्रार्थना में मांगी गई, हर एक के लिए प्रार्थना यीशु  में पूरी हों।

Wednesday, 22 June 2016

complete my joy by being of the same mind phil 2:1-5, तो मेरा आनद पूरा करो कि एक ही मन रखो

यदि मसीह में कुछ शांति और , प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है 2 तो मेरा   आनद पूरा करो कि एक मन रहो । मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो |विरोध या झूटी बढाई के लिए कुछ न करो ,पर दीनता से एक दुसरे को अपने से अच्छा समझो हर एक अपने ही हित की नहीं वरन दूसरो के हित भी चिंता करे
मेरा बिषय है  being of the same mind
complete my joy by being of the same mind,
 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक ही मन रखो
में हमेशा एक प्रश्न के साथ शुरू करता हूँ
उस कि इच्छा क्या है?
यीशु कि इच्छा क्या है ?
कलीसिया कि इच्छा क्या है?
पौलुस कि इच्छा है कि मसीह का राज्य बढे |
इसे हम येसु के उदाहरण मे देखते है,कि वह स्वर्ग है रहा कर पृथ्वी पर उसने हमारी सुधि ली ,क्योकि उसने हम से प्रेम किया |
पद 2 – पौलुस हमें एक छोटी से आज्ञा देता है |कि मेरा आनन्द पूरा करो |
पूरा करो एक मानसा रखो
इस पूरा करो का अर्थ क्या है ?
हम इसे इस प्रकार से समझे खानेके बाद बच्चो को  दूध का गिलास देते  जो पूरा नहीं भरा है वो कहते है ,ऊपर तक भरा हुआ ,उमड़ता हुआ फेलता हुआ |मसीह भी  ऐसा चाहता है कि हमारा आनन्द पूरा उमड़ता हुआ हो|थोड़ा नहीं ,पर ऊपर तक ,फैलता हुआ |
फिली 2 :1 -5 लिखा है ,
यदि मसीह में कुछ शांति और , प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है 2 तो मेरा   आनद पूरा करो कि एक मन रहो । मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा  रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो। 3 ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो। 4 तुममें से हर एक को चाहिए कि केवल अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
इस पैराग्राफ को पड़ने मुझे लगा कि यहाँ पर बहुत सि चीजे है जो सब को मिलकर एक भोजन जैसी लगती है ,दवा है लगती |जो थोड़ा  थोडा मिलकर एक बनी है |
यदि मसीह में कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
, यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
कोई  ध्यान दीजिए So if there is
any encouragement in Christ,
any comfort from love,
any participation in the Spirit,
any affection and sympathy, 2
complete my joy by being of the same mind, having the same love, being in full accord and of one mind.3 Do nothing from selfish ambition or conceit, but in humility count others more significant than yourselves. 4 Let each of you look not only to his own interests, but also to the interests of others. 5 Have this mind among yourselves, which is yours in Christ Jesus,
यदि मसीह मे कुछ है तो सब को मिला कर एक ही मन  रखो |इन पदों मे हम पते है एक जीवन जीने का तरीका |इसे पौलुस जीवन कि रौशनी  देखता है | तो हमारे भी यह जरुरी है कि हमारे जीवन जीने के तथ्य स्पस्ट है|
हमारे जीवन जीने तरीका, यदि सुसमाचार के अनुसार है, तो सचमुच हमारा जीवन ,इस संसार मे एक आदर्श जीवन का नमूना हो सकता है |
पद 27 किन्तु हर प्रकार से ऐसा करो कि तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के अनुकूल रहे। जिससे चाहे मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हें देखूँ और चाहे तुमसे दूर रहूँ, तुम्हारे बारे में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में दृढ़ता के साथ स्थिर हो और सुसमाचार से उत्पन्न विश्वास के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रहे हो
मै आशा करता हूँ कि हम इसा  ही जीवन को जिएगे मेरा विषय भी यही है   being of the same mind एक ही माणसा
यदि मसीह में है तो कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
 यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
इससे पहिले हमे अपने आप को सुसमाचार के अनुसार जीना होगा |इसलिये पौलुस हमें लिखता है जब हमारी योग्यता नही थी तब हमे मसीह ने चुना
1 कुरिथियो 1:27 – 28
 बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों। परमेश्वर ने जगत से हमे चुना कि हम जगत के लिया नमूना हो एक आदर्श हो,
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके।
पद  के अनुसार हमारा चाल चलन सुसमाचार के अनुसार होना चाहिए| जिससे विरोधीयो को यह अवसर नहीं मिले जो कि हम मसीह के राज्य के योग्य नहीं है
परमेश्वर के लोगो को सुसमाचार के बाहर कुछ नहीं है एसलिये हमें प्रतिबद्धता कि साथ चलने कि जरुरत है |ऐसा करने के लिये हम खुद विचार कर सकते है |कि यह कैसे बिशेष है ?
पहला तरीका ---जो हमें संसार से अलग करता है?
संसार के लोग आमिर होने प्रयास करते है ,आरामदायक जीवन जीने का प्रयास करते है |ऐसा के विरुद्ध हम अपने मसीह को संसार मे पेश करते है ,कि हमारे उधारकर्ता का आदर्श उन्हें मिले , ऐसा इच्छा जीवन प्रभावित करे |हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम है अपने आप को प्रस्तुत करने का पहला नियम हैं |
दूसरा तरीका ----इस तरह सुसमाचार के योग्य खुद को प्रस्तुत करने का हमारा लक्ष्य है | चर्च कि एकता  एक स मन हम मसीह जीवन जीने के लिये ,प्रस्तुत करने के लिये ,मसीह रूप मे किया जाना चाहिय |यह दूसरा तरीका है कि सुसमाचार कि दृष्टिकोण से मसीह एकता महत्पूर्ण है यही मार्ग है |
फिली 2:1-4 इन पदों मे  कोए साधारण फार्मूला नहीं है कि एक दिन मे हो जायेगा ऐसा नहीं है ,इसे हर दिन के जीवन मे खोजा जा सकता है कि सुसमाचार कि योग्य  जीवन – सुसमाचार के योग्य फल मिलेगा | क्योकि संसार एकता खोज को रहा है |हम एक आशा  से देख रहे है कोए तो हमारे साथ संगति मे खड़ा हो
हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम एक ही मनसा खोजते है |
बाइबिल हमें इस का मार्ग दिखाती है
जीने का तरीका बताती है ? कि वह मसीह का सुसमाचार है इसमे एकता मे सफलता के साथ ज्यादा से ज्यादा आशा है |
ऐसा कारण पौलुस कि छोटी आज्ञा फिलियो कि चर्च दि आज हम से यही प्रश्न है ?बाइबिल भी हमें सिखाती है यदि मसीह मे
कुछ शांति
कुछ प्रेम
कुछ सहभागिता
कुछ करुना
कुछ दया
इन मे से कुछ भी है ,तो इसे हम प्रथम स्थान के लिया शब्द है कुछ
वह मसीह उद्देश्य पूरा होगा | एक मन शब्द को फिलियो के ऐसा भाग मे दस बार प्रयोग हुआ और पौलुस कि द्वारा २३ बार जब कि पुरे  नया नियम मे 26 बार ही प्रयोग हुआ |
इस कुछ को करने के हम कैसे जीते है ? एक मन  के लिय, हम कैसे कार्य करते है ? वह कौनसा वचन है ? रोमियो कि पत्री  8:4-6
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
5 क्योंकि वे जो अपने भौतिक मानव स्वभाव के अनुसार जीते हैं, उनकी बुद्धि मानव स्वभाव की इच्छाओं पर टिकी रहती है परन्तु वे जो आत्मा के अनुसार जीते है, उनकी बुद्धि जो आत्मा चाहती है उन अभिलाषाओं में लगी रहती है। 6 भौतिक मानव स्वभाब के बस में रहने वाले मन का अन्त मृत्यु है, किन्तु आत्मा के वश में रहने वाली बुद्धि का परिणाम है जीवन और शान्ति।
यदि हमें कुछ याद करना है तो याद करे बचपन याद किया पद  गलतियों 5:22  आत्मा के फल ---  आत्मा,का फल  प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, 23 नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है।
 फिर कहता  ---वह है एक मन रहो
कुरिन्थियों के कलीसिय में फुट कि समस्या थी जो पौलुस ने सुनी तब उन को एक आज्ञा दि जिसे कुरंथियो के कलीसिया ने सुना |
1 कुरन्थी 1 :10
10 हे भाईयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मेरी तुमसे प्रार्थना है कि तुम में कोई मतभेद न हो। तुम सब एक साथ जुटे रहो और तुम्हारा चिंतन और लक्ष्य एक ही हो।
तो मुझे पूरी तरह प्रसन्न करो। मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एका रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
एक जैसा ही लक्ष्य –हमारा  लक्ष्य सिर्फ यीशु मसीह है वो बड़े मे घटू ,यही सोच होनी चाहिए
मै  आज मसीहो से ,जो प्रभु के है एक प्रायस कि उमीद करता हूं कि हम सब एक चीज करे फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे  सोचे यदि हम कुछ कर सकते है तो कुछ कर दीजिए
यदि मसीह में कुछ शांति और प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है
 2 तो  मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो ।
मैं चाहता हूँ, हम सब बाइबिल तरह देखे -- एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा  रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
हम सीखे कि एक मन से बहुत कुछ कर सकते है
एक मन से कि गाइ प्राथना सुनी जाती है |
इस के उदाहरण बाइबिल मे है फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे  कुछ

Monday, 23 May 2016

अपने लिए स्वर्ग में धन इक्कठा करो ( हिंदी )Treasures in Heaven

अपने लिए स्वर्ग में धन इक्कठा करो
अपने लिये धरती पर भंडार मत भरो। क्योंकि उसे कीड़े और जंग नष्ट कर देंगे। चोर सेंध लगाकर उसे चुरा सकते हैं। 20 बल्कि अपने लिये स्वर्ग में भण्डार भरो जहाँ उसे कीड़े या जंग नष्ट नहीं कर पाते। और चोर भी वहाँ सेंध लगा कर उसे चुरा नहीं पाते। 21 याद रखो जहाँ तुम्हारा भंडार होगा वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।
हम धन क्यों इक्कठा करे ?
इस के लिए हम, कुछ बातो पर विचार करेगें |
1 –इस धरती पर जीवन के लिये
2 –हम अपने बच्चो के लिये
3 – गरीबो असहाय  के लिये
4 अन्नत जीवन के लिये

1 –इस धरती पर जीवन के लिये
इस ससार में हर एक के लिए महत्वपूर्ण हें कि हम अपने भोजन के लिए धन इक्कठा  करे |जिससे हम ओर हमारा जीवन अच्छे से जी सके ,हमारा जीवन को कोई कष्ट नहीं हो |शांति से ,आराम से,इस जीवन का ब्यतीत हो |

2 –हम अपने बच्चो के लिये
वचन कहता हैं 2 कुरिथियो कि पत्री १२:14 क्योंकि बच्चोंको माता,पिता के लिए धन बटोरना नही चाहिए ,पर माता पिता को बच्चो  के लिये धन इक्कठा करना है|

3  गरीबो असहाय  के लिये
मती 5:7 धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। 
प्रेरित के काम 20 :35 मैं पौल कहता है मे ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है

4 अन्नत जीवन के लिये
इसे बाइबिल बड़ी गम्भीरता से लेती कि हम जीवन के हर पहलु को बड़ी को अच्छे से देखे ओर सीखे| इसलिये मती का सुसमाचार 6:19 -21
19 अपने लिये धरती पर भंडार मत भरो। क्योंकि उसे कीड़े और जंग नष्ट कर देंगे। चोर सेंध लगाकर उसे चुरा सकते हैं। 20 बल्कि अपने लिये स्वर्ग में भण्डार भरो जहाँ उसे कीड़े या जंग नष्ट नहीं कर पाते। और चोर भी वहाँ सेंध लगा कर उसे चुरा नहीं पाते। 21 याद रखो जहाँ तुम्हारा भंडार होगा वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।

इस प्रथ्वी पर सुरक्षा कि कमी हैं |
आज कल हम सभी चाहते है कि हमारी सुरक्षा अच्छी होनी चाहिए, को लेकर बड़े ही तैयार हो रहे है कि हमारे घर ,सामान  बच्चे सभी सुरक्षितहोने चाहिये |
वचन कहता है कि यदि हम धन को घर में रखते है ,तो उसके चोरी होने का डर है
बक्से मै रखा तो कीड़े खा लेगे ,लोकर मै भी सुरक्षा कि कमी है चाबी चोरी हो सकती है |


सुलेमान इस संसार में सबसे धनी ब्यक्ति था उसे सारे अनुभव कर लिखा हें
सभोपदेसक 5:10 -16
अपने लिये स्वर्ग में भण्डार भरो |कि यह बड़ी शिक्षा हैं कि हम अपने लिये भण्डारण कैसे करे ?
15 ए10 वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है वह उस धन से जो उसके पास है कभी संतुष्ट नहीं होता। वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है, जब अधिक से अधिक धन प्राप्त कर लेता है तब भी उसका मन नहीं भरता। सो यह भी व्यर्थ है।
11 किसी व्यक्ति के पास जितना अधिक धन होगा उसे खर्च करने के लिये उसके पास उतने ही अधिक मित्र होंगे। सो उस धनी मनुष्य को वास्तव में प्राप्त कुछ नहीं होता है। वह अपने धन को बस देखता भर रह सकता है।
12 एक ऐसा व्यक्ति जो सारे दिन कड़ी मेहनत करता है, अपने घर लौटने पर चैन के साथ सोता है। यह महत्व नहीं रखता है कि उसके पास खाने कों कम हैं या अधिक है। एक धनी व्यक्ति अपने धन की चिंताओं में डूबा रहता है और सो तक नहीं पाता।
13 बहुत बड़े दुःख की बात है एक जिसे मैंने इस जीवन में घटते देखा है। देखो एक व्यक्ति भविष्य के लिये धन बचा कर रखता है। 14 और फिर कोई बुरी बात घट जाती है और उसका सब कुछ जाता रहता है और व्यक्ति के पास अपने पुत्र को देने के लिये कुछ भी नहीं रहता।

क व्यक्ति संसार में अपनी माँ के गर्भ से खाली हाथ आता है और जब उस व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वह बिना कुछ अपने साथ लिये सब यहीं छोड़kar  चला जाता है। वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये वह कठिन परिश्रम करता है। किन्तु जब वह मरता है तो अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाता। 16 यह बड़े दुःख की बात है। यह संसार उसे उसी प्रकार छोड़ना होता है जिस प्रकार वह आया था। इसलिये “हवा को पकड़ने की कोशिश” करने से किसी व्यक्ति के हाथ क्या लगता है?
कार्य करे
सभोपदेशक 11 :1-2
1 अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दे, क्योंकि बहुत दिन के बाद तू उसे फिर पाएगा। 
2 
सात वरन आठ जनों को भी भाग दे, क्योंकि तू नहीं जानता कि पृथ्वी पर क्या विपत्ति आ पडेगी। 
हम अपनी जगह पर, अपने कार्य के द्वारा, हम दुसरो के अच्छे कार्य कर सकते है |
बाइबिल हर एक अच्छे उद्धहरण के द्वारा समझती है |एक घटना मिलतीं है | 
1 ( लुका 16:1-4 )
1 फिर उस ने चेलों से भी कहा; किसी धनवान का एक भण्डारी था, और लोगों ने उसके साम्हने उस पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब संपत्ति उड़ाए देता है। 
2 
सो उस ने उसे बुलाकर कहा, यह क्या है जो मै तेरे विषय में सुन रहा हूं? अपने भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता। 
3 
तब भण्डारी सोचने लगा, कि अब मैं क्या करूं क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझ से छीन ले रहा है: मिट्टी तो मुझ से खोदी नहीं जाती: और भीख मांगने से मुझे लज्ज़ा आती है। 
4 
मैं समझ गया, कि क्या कताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊं तो लोग मुझे अपने घरों में ले लें। 
इस धरती पर, बाइबिल हर प्रकार कि शिक्षा देतीं हैं हम अपने लिये एक शिक्षा ले ओर एक तरीका ले ,कि हम कैसे कार्य करे|

जो हमे मिला है उसी से हम अपने लिया धन एकत्रित करे कि हमारे लिया स्वर्ग के  बड़े खजाने धन एकत्रित हो
जब हम अपना उद्धार खरीद नहीं सकते है ,तो एक कार्य कर सकते है
 जैसे वचन कहता है |इफिसियों कि पत्री 2:8-9 8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। 
1 पतरस कि पत्री 1 :18-19  क्योंकि तुम जानते हो, कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बाप दादों से चला आता है उस से तुम्हारा छुटकारा चान्दी सोने अर्थात नाशमान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ। 
19 
पर निर्दोष और निष्कलंक मेम्ने अर्थात मसीह के बहुमूल्य लोहू के द्वारा हुआ। 


हम अपने को तैयार करे ,
परमेस्वर मे आशा रखे ओर कार्य करे
1 तिम 6 :17 इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। 
प्रेरित के काम 20 :35 मैं पौल कहता है मे ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है॥ हम भी करे
पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, 

इफिसियो कि पत्री 4 :28 28 चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे; इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो। 
 परमेश्वर सभी को आशीष दे |