Sunday, 4 February 2018

परमेश्वर देश के लिए क्या कहता है

परमेश्वर देश के लिए क्या कहता है ?
इसे हम बाइबिल में देखे कि
भजन सहिंता 20:5-7
तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊंचे स्वर से हर्षित होकर गाएंगे, और अपने परमेश्वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे। यहोवा तुझे मुंह मांगा वरदान दे् 
अब मैं जान गया कि यहोवा अपने अभिषिक्त का उद्धार करता है; वह अपने दाहिने हाथ के उद्धार करने वाले पराक्रम से अपने पवित्र स्वर्ग पर से सुनकर उसे उत्तर देगा। 
किसी को रथों को, और किसी को घोड़ों का भरोसा है, परन्तु हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे। 
हमारे प्यारे भाई बहिनों हर अवसर के लिए बाइबिल में कुछ न कुछ आशीष कि बातें कहती है मै इस 26 जनवरी के अवसर पर मै आप को यह बताना चाहता हूँ |कि बाइबिल इस के संबध में बहुत साफ कहती है हर एक बात का  समय है। जिसे सुलेमान इस तरह लिखता है
सभोपदेसक 3:1
हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।
रोने का समय, और हंसने का भी समय; नाचने का भी समय है;
12 मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं;
14 मैं जानता हूं कि जो कुछ परमेश्वर करता है वह सदा स्थिर रहेगा; न तो उस में कुछ बढ़ाया जा सकता है और न कुछ घटाया जा सकता है; परमेश्वर ऐसा इसलिये करता है कि लोग उसका भय मानें। तो

हम अपने उद्धार के कारण ख़ुशी मनाये ,और झंडे खड़े करे और गाये| क्योकि पाहिले हम गुलाम थे पाप के और संसार के भी थे, जैसे हम जानते ,पर  आज हम स्वतंत्रत है हम पर कोई बंदिस नही है| इसलिय हम इस जगह और इस समय हम आजादी को महसूस करते  है | इसलिये बाइबिल हमे याद दिलाती है | जब हम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। यहुन्ना 8:32 सत्य क्या ?जो स्वम ही यीशु ने कहा है मार्ग सत्य और जीवन मै ही हूँ;बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नही पहुँच सकता यहुन्ना 14:6
 इसलिये 2 कुरिन्थियों 2:14 पौलूस कहता  परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान का सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। और यही सुगन्ध हम परमेश्वर के निकट उद्धार पाने वालों, और नाश होने वालों, दोनो के लिये मसीह के सुगन्ध हैं। 
16 
कितनो के लिये तो मरने के निमित्त मृन्यु की गन्ध, और कितनो के लिये जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातों के योग्य कौन है? 17 क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं॥ 
बाइबिल हमे बताती है कि हर एक के लिए समय है
इसलिये मैं आज आप सभी से एक निवेदन करना चाहूगा भजन सहिंता 37:3 में चार बाते है देखे
  यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। 
जब ये चार बाते हमारे पास हो तभी हम ख़ुशी से इस उत्सब में समिलित हो सकते और हम कह है|
1  यहोवा(परमेश्वर) पर भरोसा रख,
2 और भला कर;
3  देश में बसा रह,
4 और सच्चाई में मन लगाए रह। हम मनुष्य के लिए यही चार बाते जरूरी है जो यही है |
 भरोसा रखना ,भला करना ,देश में रहना  सच्चाई से जीना |यही जीवन जीने का नियम है | तब हम  कहे
तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊंचे स्वर से हर्षित होकर गाएंगे, और अपने परमेश्वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे।
इसलिये हम पाहिले परमेश्वर और देश को नमन करे ,और अपने झंडे खड़े करे और उत्सब मनाये  
परमेश्वर हम सभी को आशीष दे !



Friday, 16 December 2016

क्रिसमस कि भावना (true spirit of Christmas)

क्रिसमस कि भावना
लूका 1: 41-55 क्रिसमस क्या है ?
और जकरयाह के घर में जाकर इलीशिबा को नमस्कार किया।
41 ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।
42 और उस ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है।
43 और यह अनुग्रह मुझे कहां से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?
44 और देख ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।
45 और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उस से कही गईं, वे पूरी होंगी।
46 तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करने वाले परमेश्वर से आनन्दित हुई।
48 क्योंकि उस ने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है, इसलिये देखो, अब से सब युग युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
आज हम सभी में एक बहुत बड़ी क्रिसमस की भावना है । कि हमारा पर्व आ गया |
हमें  क्रिसमस की भावना की आवश्यकता क्यों है?
यदि आपने विश्लेषण नही किया है तो हमारे साथ अभी इस के बारे में सोचना शुरू करे
सकि क्रिसमस क्या है ?
क्रिसमस पार्टी,  क्रिसमस के लिए पार्टी का दौर यह भी एक क्रिसमस कि भावना है जो हमें इक्कठा होने के लिए पेरित करता है|
छोटी पार्टी ,बड़ी पार्टी जो कल खत्म हुए ,याद गर है मै भी २० वर्षो से गडन  पार्टी को हमेशा याद करता हु क्योकि हमें एक बड़ा गिफ्ट पैकेट मिलाता था,|यह हमे ख़ुशी देता है|
यही हाल कुछ आमेरिकियो का है,लगभग 95 %से भी ज्यादा लोग कार्ड भेज कर क्रिसमस पर अपनी भावना को व्यक्त करते है एक सर्वे के अनुसार 5 अरब से भी ज्यादा कार्ड भेजते है |
एक प्रकार कि आत्मा और भी है जो शराबकि  बोतल  पर आ जाती है उन्हें लगता है कि क्रिसमस सिर्फ बोतल में है| बोतल ही क्रिसमस है |  
हर एक का अपना द्रष्टि कोण है जो हम अपनी द्रष्टि से सोचते है |
क्रिसमस की सच्ची भावना क्या है? What is true spirit of Christmas?  इस प्रश्न का सबसे अच्छा जवाब बाइबिल से जाने के लिए मैं आपको बाइबिल में आपके के साथ देखना चाहता हूँ
ल्यूक अध्याय 1 और 2 अध्याय है और वहाँ से , हम यह जानेगे  कि क्या क्रिसमस की सच्ची भावना है।
1 आप के लिए स्पष्ट रूप से में, मैं लोगों को और स्वर्गदूतों के बीच मसीह के जन्म के लिए कुछ पदों से स्पष्ट करुगा ।
2 एलिजाबेथ, लूका 1:41,  ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। गर्भ और एलिजाबेथ पवित्र आत्मा से भर गया था और वह एक ज़ोर की आवाज़ के साथ प्रतिक्रिया बाहर हुए  और कहा, 42 और उस ने बड़े शब्द पुकार कर कहा तू स्त्रियों में धन्य हैं और धन्य तेरे गर्भ का फल है। कैसे यह मेरे साथ हुआ है
कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई ? "कि इलीशिबा की प्रतिक्रिया थी और वह बता दिया इसकी वास्तविकता में क्रिसमस की भावना।
लेकिन इससे पहले कि हम कहते हैं कि ल्यूक 1. यहाँ हम में 63  यह एक और घटना कि चर्चा उस के पिता के साथ पद 63जब जकरयाह से पूछा  कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? और उस ने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, कि उसका नाम यूहन्ना है  और  सभों ने अचम्भा किया।
64 तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।
65 और उसके आस पास के सब रहने वालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई।
66 और सब सुनने वालों ने अपने अपने मन में विचार करके कहा, यह बालक कैसा होगा क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था॥
67 और उसका पिता जकरयाह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्ववाणी करने लगा।
उसके पिता, जकारिया पवित्र आत्मा से भर गया था और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।  परमेश्वर यहोवा धन्य है
जकारिया प्रतिक्रिया थी
तब स्वर्गदूत भी यह नहीं छिपा सके कि ख़ुशी कि खबर हम स्वर्ग में ही रखे  
2 लुका  अध्याय 2 :13.  यहाँ हम स्वर्गदूतों के दायरे में देखते 13, कि चरवाहों को अचानक स्वर्गदूतो का एक दल  के साथ दिखाई दिया घोषणा, कि पद 2 :10
तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है।
12 और इस का तुम्हारे लिये यह पता है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।  दूत की प्रतिक्रिया थी
 जब स्वर्गदूत उन के पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।
उन के अंदर यह भावना थी कि क्या हुआ है हम देखे पद 20 और गड़ेरिये जैसा उन से कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए॥

3 शिमोन कि सच्ची भावना पद 2: 25, अद्वितीय व्यक्ति का सफर और देखो, यरूशलेम में शमौन नाम एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति की बाट जोह रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था।
26 और पवित्र आत्मा से उस को चितावनी हुई थी, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख ने लेगा, तक तक मृत्यु को न देखेगा। शिमोन आज मंदिर है,तो सिर्फ इसलिये मसीह के जन्म कि बाट देख रहा था
पवित्र आत्मा के द्वारा उसे पता चला कि वह मौत नहीं देखना होगा जब तक वह प्रभु के मसीह को देखा था। और वह मंदिर में यही  भावना से  आया कि यीशु को देखे
वचन कहता है पद लुका 2 :28 तो उस ने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा,
29 हे स्वामी, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है।
30 क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है।
31 जिसे तू ने सब देशों के लोगों के साम्हने तैयार किया है।
मसीह का जन्म सब के लिया उद्धार मुक्ति का सन्देश सब देश के लोगो के लिए है कोए भी क्यों न हो चाहे इस्रायली यहूदी या अन्यजती सभी के लिए है
"एक अन्यजाति कि मसीह जन्म कि भावना को बताती है,
पद 2:36 और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नाम फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन थी: वह बहुत बूढ़ी थी और ब्याह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी।
37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।
38 और वह उस घड़ी वहां आकर प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभों से, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी।
एक बड़ी औरत जो असेरा  के गोत्र की बेटी की प्रतिक्रिया है,
सात साल उसकी शादी के बाद और फिर 84 साल की उम्र में एक विधवा के रूप में एक पति के साथ रहते थे।
वह कभी नहीं छोड़ा मंदिर उपवास और प्रार्थना के साथ रात-दिन कार्य किया। उसी क्षण वह परमेश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया, उन सभी के लिए उसके बारे में बात करने के लिए जारी रखा है जो देख रहे थे वे बाते जो
एलिजाबेथ, जकारिया, स्वर्गदूत ,एलिजाबेथ, मरियम, अब शिमोन "पवित्र आत्मा उस पर था और यह किया गया था यरूशलेम के छुटकारे के लिए।
यह ऐसा संदेसा है जो छिपाने से छिपाने का नही है
मरियम एलिजाबेथ, जकारिया, स्वर्गदूतों,  शिमोन, हान्ना, स्वर्गदूतों, चरवाहों मूल रूप से एक प्रतिक्रिया थी। और कहा कि एक प्रतिक्रिया क्रिसमस की भावना है और सही शब्द आराधना है। आराधना करते हैं। पहले क्रिसमस में उन सभी ने  क्रिसमस की भावना की प्रशंसा और धन्यवाद किया गया एक शब्द में हम कहे परमेश्वर की महिमा, की है।
और मत्ती 2: 2, अभी तो हम कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण लोगों को बाहर छोड़ नहीं सकते है,
हमें उन पण्डितों को जो 2 कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उस को प्रणाम करने आए हैं
एक ही मकसद था आराधना करना
हर कोई आराधना कर रहा था।
तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
उस ने बड़े शब्द पुकार कर कहा तू स्त्रियों में धन्य हैं और धन्य अपने गर्भ का फल है।
तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा।
तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए॥
हे स्वामी, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है।  क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है।
यही कारण है कि क्रिसमस की भावना है।
हालांकि हेरोदेस एक झूठ कहा था कि वह उचित समझ में किया था रवैया आराधना करने के लिए। यह तो क्रिसमस के सर्वोच्च रवैया है।
इस की भावना है
क्रिसमस और यह मासिहयो के लिए आराधना का सर्वोच्च समय के रूप में, हम अपने उद्धारकर्ता के जन्म का जश्न मनाने है।
हर समय की इस बार आराधना का समय है। यह आराधना का एक दृष्टिकोण है।  एक भावना है।  यह दिल का रवैया इसलिए आश्चर्य और से भर जाता है वह यह है कि
क्या परमेश्वर से किया गया है हमारी  भावना यह है, दिल से, हम सभी के दिलो में आज मसीह का जन्म हो और हम उसकी स्तुति महिमा का  धन्यवाद कर सके |

Wednesday, 7 December 2016

ञुतरे झालकाव कान इपिल santhali song

1               ञुतरे झालकाव कान इपिल, जोतो होड़ एभेन कोम
           दूत कोवाक जायजुग सेरेञ , दे आंजोम ओचोकोम
           ओनको हों दुतको तुलुच , जेमोन को सेरेन मा
           चोट उतर रे ईसोराक महिमा होयोक मा l

कोरस : ञुतरे झालकाव कान इपिल, निरैयक आ मेनते
             सुलूक  रेन राजा ठेन गे देसे आयुर लेमे l 
             एन्डे खान सेरमा दुतको आरहोको सेरेञl
           चट उतररे ईसोराक् महिमा होयोक् मा l

2                               ञुतरे झालकाव कान इपिल , बेबुज मानवा को दे
           सारी सुक ञामजोंग लागित् , होर उदुक् आकोमे l 
          मिमित् दिसोम रेन होड़को बेथलेहम नाद्वा ठेन
           जीसू को सेवाआयमा प्रभु सानामको रेन l    

Monday, 14 November 2016

Do not judge matt 7:1-2 (Hindi ) दोष मत लगाओ


दोष
सुसमाचार के अनुसार यह विषय दो स्थानों पर मिलता है
दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जाये | लुका 6:37 -38,मती का सुसमाचार 7 :1-2
यह दोष का लगने कि क्रिया ,इंसान में स्वभाव से है| यह आदम से हम तक पहुची है |यह बड़ा प्रश्न और चेतावनी भी है ? इसलिए हम इसके लाभ और हानि पर विचार कर सकते है |
यह दोष लगाने की क्रिया हम इंसान के स्वभाव में है|इसलिये हम बिना विचार के हम किसी के विरुद्ध कुछ भी बोला देते है,जो भी हम अपने विचार आया कह देते है |जिससे हमे फायदा होना चाहिये |
बूमरेंग 
यह शिकार करने का हथियार है,जिससे प्राचीन कल में लोग शिकार में इस्तेमाल करते थे,जिसे मनुष्य एक स्थान से फेक कर प्रयोग करते थे,इसे जैसे हम फेकते है यह वैसे ही वापस अपने स्थान पर आता है |आज यही वचन हमे से स्पष्ट रीति से कहता है (बाइबिल मति 7 :1-2) दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जायेक्योकि जिस प्रकार तुम दोष लगते हो ,उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाये और जिस नाप से तुम नापते हो ,उसी नाप से तुम्हारे लिए नापा जायगा,यही है बूमरेंग कि प्रकिर्या है |
कुछ लोग हमेशा दूसरो मै दोष खोजते रहते है उन्हें अच्छे गुण दिखाई ही नही देते है और हमेशा कुछ न कुछ कहते ही रहते है ऐसा कह कर वे अपने सहकर्मी के साथ ,परमेश्वर कि द्रष्टि में भी दोषी और न्याय के भागी ठहराते है | जब एक ऐसा व्यक्ति ,जो दूसरो में दोष देखता है तो वह ऐसा करके ,वह अपने दोषो कि ओर ध्यान खिचता है |ऐसे दोष जो स्वम उन्हें नही देखा सकता है मति 7: 5 हें कपटी पहले अपनी आँख का लटठा निकाल ले तब तू अपने भाई की आँख तिनका निकला सकेगा | दोष लगाने के कार्य में सबसे पहले सुसमाचार से जुड़े लोग ही ऐसा कार्य में आगे है |पादरी और प्रचारक अपने कार्य में समुदाय से मिलते ही एक दुसरे पर दोष लगा कर अपनी प्रतिष्ठा को बड़ते है |उन्हें ऐसा लगता है ,कि हमारा कार्य सबसे अच्छे है परन्तु वे अपने लक्ष्य को भूल जाते है |
इस प्रकार यीशु मसीह अपने चेलो को एक सच्चा न्याय करना सिखाना चाहते थे यदि वे दूसरो के शिक्षक बनाना चाहते है|यदि चेलो को इस समझ नही हुई तो वे अंधे होकर, दुसरे को कैसेमार्ग दिखायागे | इस विपरीत हम दूसरो मै दोष निकला कर उन्हें पथ भ्रष्ट नहीं कर देगे |यह दोष निकालने का तरीका गलत है “ झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा।नीतिवचन 19:5 ‘’ इसलिये हमे दोष लगाने में ,न्याय बचाना चाहिए मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ॥ यहुन्ना 7:24
1.उपरी तौर से न्याय (Superficial judgment)
लुका 7:36 -39 किसी फरीसी ने उस से बिनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा।
37 और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई।
38 और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बारबार चूमकर उन पर इत्र मला।
39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिनी है।इस घटना से लोग मन मै सोच कर न्याय कर रहे है यह न्याय नहीं है |
2 पाखंडी न्याय ( Hypocritical judgment )
रोमियो कि पत्री 2:1-2 हे दोष लगाने वाले, तू कोई क्यों न हो; तू निरुत्तर है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिये कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।  और हम जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करने वालों पर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3.क्षमा रहित न्याय (Unforgiving judgment)
बाइबिल कहती है कि न्याय क्षमा के बिना अधुरा है  मति 5 :6  धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। न्याय दया के साथ हो,इस के विपरीत तीतुसहमे एक व्यवहारिक सलाह भी देता कि हम  किसी को बदनाम न करें; झगडालू न हों: पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें। तीतुस 3:2
4.स्वम सोच न्याय (Self righteous judgment)
जब न्याय कि बात हो तो ,हम अपनी सोच से नही सोचे कि उस परिपेच्छ में सोचे कि वंहा हमारा अभिमान (घमंड )कार्य तो नही कर रहा है |इसलिये याकूब ने अपनी पत्री में लिखा है ,याकूब 4:6    वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। जैसेअनुग्रह  हमें मिला है वैसे ही हम दूसरो के साथ करे |
5.आसत्य न्याय (Unture Judgment ) 
जो सत्य नही और हम जानते भी नही है तब हमारी प्रतिक्रिया शांत होना चाहिए ,व्यावहारिक नियम यही कहता है कि हम शांत रहे |परमेश्वर का वचन कहता है
नीतिवचन वचन 18 :5 दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है।
मार्गदर्शन के लिए कारण है 
जब हम दूसरो पर दोष लगते है तो हमे अपने आप को जचने कि आवश्कता है कि हुम उसे नही पर अपने आप को देखे |
दोषों के कारण हम लोगो कि सरहना नही कर सकते परन्तु एक दोष के करण लाखो अच्छाईयो  को अनदेखा भी नही कर सकते है |
दोष देखने कि आदत के कारण हमारी उन्नति रुक जाती क्यों ?हुम हर समय अपने न्याय और इच्छा को सर्वोतम मानते है और दुसरे को दोषी ठहरा कर अपने लिए दुःख और निराशा मुफ्त में उठा लेते हें उसी के साथ संघर्ष करते रहते  ,हम अपनी उन्नति को नही देखते है |
हम दूसरो के दोष के कारण अपने को दुखी बनाते है |
हे भाइयों, एक दूसरे की बदनामी न करो, जो अपने भाई की बदनामी करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है; और यदि तू व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलने वाला नहीं, पर उस पर हाकिम ठहरा। याकूब 4:11

Tuesday, 20 September 2016

Soul to Poul life

3 मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बाप दादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
4 और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनों को बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंथ को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला।
5 इस बात के लिये महायाजक और सब पुरिनये गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहां हों उन्हें भी दण्ड दिलाने के लिये बान्धकर यरूशलेम में लाऊं।
6 जब मैं चलते चलते दमिश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?
8 उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है।
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता था उसका शब्द न सुना।
10 तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा।
11 जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 और हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहने वाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया।
13 और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं  ।
14 तब उस ने कहा; हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने।
15 क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने उन बातों का गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं।
16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।
17 जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया।
18 और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।
19 मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करने वालों को बन्दीगृह में डालता जगह जगह आराधनालय में पिटवाता था।
20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाया जा रहा था तब मैं भी वहां खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके घातकों के कपड़ों की रखवाली करता था।
इस महीने में हम बाइबिल के महान योद्धा के जीवन पर विचार कर रहे है इसी श्रृंखला में
आज हम शाऊल के जीवन पर विचार करेगे कि वह कौन है ? उसका जीवन कैसा था,उसकी शिक्षा और पारिवारिक सिथति ? ओए हम प्रेरित पौलुस के जीवन से क्या क्या सीख सकते हैं?
साधारण से पौलुस ने परमेश्वर के राज्य के लिए असाधारण काम किया   पॉल की कहानी यीशु मसीह के द्वारा पुरे उद्धार की एक कहानी है यह एक  सच्ची गवाही है| कि कोई भी परमेश्वर की कृपा से परे नहीं है।
शाऊल ने अपनी गवाही में हमें बड़े ही साफ रीति से कहा है| में किलकिया के तरसुस में जन्मा यहूदी मनुष्य हूँ | यह जगह वर्त्तमान में तुर्की में है,जो रोमन समाराज्य का हिस्सा था इसलिए पौल को जन्मा से रोमन नागरिकता मिली थी या कारण यहूदी होते हुए भी वह रोमन नागरिक था|
शाऊल के मातापिता यहूदी जाति के बिन्यामिन गोत्र से है, यहूदी लोग अपने परमेश्वर कि आज्ञा पालन करने वाले एव उस पर चलने वाले और अपने बच्चो को परमेश्वर के वचन कि शिक्षा देने कोइ कमी नहीं छोड़ते है| क्योकि परमेश्वर कि आज्ञा है
व्यबस्था विवरण 4:9-10
9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उन को भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।
10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा था, कि उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं।
इसलिए यहूदी लोग धर्म कि रक्षा के लिय, धर्म के कानून का  पालन बड़ी सकती से करते है
क्योकि उन्होंने सिखा था कि परमेश्वर कि आज्ञा ना मानाने का फल क्या होता है ४०० साल कि बन्दुबाई के  दुःख को  देखा था नाबोकद्नेसर का आत्यचार सह था कि यह सब आज्ञा ना मानाने के कारण हुआ था |
इसलिए तेरह साल की उम्र में शाऊल को फिलिस्तीन को भेजा गया जंहा गम्लीएल नाम के एक रब्बी ने  शाऊल को यहूदी इतिहास, भजन और नबियों के कामों और व्यबस्था को जानने के लिए अवसर मिला, उनकी शिक्षा के लिए पांच या छह साल का समय में ऐसी बातें सीखा होगा।और प्राचीन काल में शिक्षा का स्वरूप  सवाल और जवाब कि शैली के रूप में विकसित किया गया था| वह यह उस का "अभियोगात्मक भाषण।" यह अभिव्यक्ति का यह तरीका rabbis यहूदी कानून की बारीकियों पर बहस,या तो धर्म रक्षा या जो लोग कानून तोड़ दिया पर मुकदमा चलाने में मदद हो । शाऊल में यही गुण पूरी तरीके से विधमान था ,कि वह एक आच्छे, एक वकील बनने के लिए, और सभी संकेतों और 70पुरनियो कि महासभा, पुरुषों के लिए जो यहूदी जीवन और धर्म पर शासन करने और यहूदी सुप्रीम कोर्ट का सदस्य बनने की ओर इशारा करता है ।
ऐसा विश्वास जो समझौता करने के लिए अनुमति नहीं देता है । शाऊल अपने विश्वास के लिए पूरे जोश के साथ था, और यह एक ऐसा उत्साह है जो धार्मिक कट्टारपंथी (उग्रवाद) के रास्ते पर  शाऊल का नेतृत्व करता है।
गम्लीएल कौन है ?
गम्लीएल एक फरीसी रब्बी ( गुरु )है जो यहूदी  गम्लीएल यहूदी कानून का जानकर और एक फरीसी चिकित्सक के रूप में मान्यता प्राप्त है प्रेरितों 5 के 34 में एक आदमी, वणर्न है जो सभी यहूदियों, को यीशु के प्रेरित कि निंदा नहीं करने के लिए बात की थी वह मह्सभा में गम्लीएल ही बोलता है, और यन्ही को पॉल  यहूदी शिक्षक के रूप में बताता है  प्रेरित:22:3
 1 शताब्दी ईस्वी में महासभा में एक अग्रणी अधिकार था। कि शिमोन बेन हिल्लेल का पुत्र है, और महान यहूदी शिक्षक Hillel एल्डर का पोता था, जो यरूशलेम (70 ई) में दूसरा मंदिर के विनाश से पहले बीस साल निधन हो गया।
जोश के साथ ---विश्वाश के साथ
यही शिक्षा के कुछ कारण है कि
1.शाऊल स्टीफन की सुनवाई में उपस्थित हुआ और उसके पथराव और मौत के लिए मौजूद गवाह बना था  07:58 – 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े उतार रखे।
2-5: 39 -42, परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
40 तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
यह सब को देख कर शाउल का जोश, अपनी सीमा से ज्यादा हो गया था वह
परमेश्वर के नाम पर अपने धर्म कि रक्षा के लिए , शाऊल ईसाइयों की खोज में अधिक क्रूर हो गया।  एक धार्मिक आतंकवादी की तुलना में अधिक शातिर खासकर जब उनका मानना है कि वह निर्दोष लोगों की हत्या करके प्रभु की इच्छा पूरी कर रहा है।
8: 3 शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर घर घुसकर पुरूषों और स्त्रियों को घसीट घसीट कर बन्दीगृह में डालता था॥
परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था ऐसा जोश था कि वह जो कर रह है वह सब परमेश्वर के कर रहे है यह सोच शाऊल कि थी ,जब कि यह सोच सच्चाई से परे है | इस लिए वह तेजी से यरूशलेम के बाद आस पास के स्थानों में ,गाँव में और दुसरे शहरों में भी शाउल मसीहियो को मार रहा था |इसलिए उसने महायाजक से  चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, जो यरूशलेम से दमिश्क को  150 मील की दुरी पर , सड़क पर यीशु मसीह के साथ  शाऊल की मुडभेड यीसू से होती है आध्याय 9 यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले, वह दमिश्क में सभाओं को पत्र के लिए महापुरोहित  से पूछा था, किसी भी ईसाइयों को पीटने मरने के लिए अनुमति पत्र दे शाउल हर काम को तरीके से करता है मसीह को मरता तो भी वह पत्र लेकर जाता है    क्योकि वह धर्म रक्षक है और उन्हें यरूशलेम में कैदकर सजा देने के लिया आ रहा है ।
कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: र यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?  हे प्रभु, तू कौन है?
में यीशु हूँ
यह शाउल कि ,यीशु के साथ शाऊल की पहली मुठभेड़ नहीं हो सकती है,
जैसा कि कुछ विद्वानों का मत  है कि युवा शाऊल, यीशु के नाम को जानता है ,हो सकता है और यही भी हो सकता है कि वह यीसू कि म्रत्यु का गवाह हो सकता है
इसएक ही पल में , शाऊल का जीवन उल्टा हो गया था। एक बलवान पुरुष जिस के पास बल है,शक्ति है|फिर भी आज यीशु सामने निर्बल दिखाई देते है |शाउल को भी आज मालूम हुआ कि मेरे काम सब मैले चिथड़ो के सामना है इन सब का कोईं मोल नही है उसके राज्य सब बेकार है हम ही प्रभु के सामने वेसे ही हें,हम भी कुछ भी करे हमरे सबसे अच्छे काम  में यीसू नही तो सब बेकार है |
 प्रभु के प्रकाश ने  उसे अंधा, कर दिया और जैसा कि उन्होंने कहा कि वह यात्रा के लिए उसके साथीयो पर निर्भर होना पड़ा। यीशु ने आदेश दिए हैं, कि शाऊल दमिश्क को जा रखा है जो तुझे करना है वह कहा जायेगा |
तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ? What shall I do, LORD?
इस  का उतर है यहुन्ना 6 : 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो। उस पर विश्वाश  किया
पहली बार वह एक दुष्ट आदमी के रूप में शाऊल को अपनी प्रतिष्ठा का पता चला था तब यीशु ने आदेश दिया
परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्त्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है।
16 और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा।
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।
18 और तुरन्त उस की आंखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; फिर भोजन कर के बल पाया॥  कि हनन्याह नाम के एक आदमी के साथ संपर्क बनाने के लिए। लेकिन प्रभु ने  हनन्याह को बताया कि शाऊल को मैने  "चुना है " कि गैर-यहूदियों, राजाओं और इसराइल (9:15) के बच्चों से पहले उसका नाम ले जाने के लिए और इतने (9:16)उसे कितने दुःख उठने पड़ेगे  हनन्याह ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन किया है और
वही जोश के साथ वचन में लिखा है ---
शाऊल, जिस पर वह हाथ रखे पाया, और उसे यीशु मसीह के उनके सपने के बारे में बताया। प्रार्थना के माध्यम से, शाऊल, पवित्र आत्मा (V.17) प्राप्त उसकी दृष्टि पाया आ गया और बपतिस्मा दिया गया था (v.18)। शाऊल ने तुरंत सभाओं यीशु का प्रचारकर और कह रही है वह परमेश्वर के पुत्र (v.20) में चला गया है। शाऊल की प्रतिष्ठा को अच्छी तरह से जाना जाता था और लोग, हैरानी  और उलझन में थे। यहूदियों ने सोचा कि वह ईसाई (v.21)को  दूर लेने के लिए आया था। आज खुद मसीह का हो गया है शाऊल का साहस वृद्धि के लिए  में दमिश्क में रहने वाले यहूदियों साबित करना है कि यीशु मसीह (ने v.22) था शाऊल के तर्कों से चकित थे। पौल अपनी गवाही में गलतियों कों लिखा 1:१२-१४
12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13 यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था।
14 और अपने बहुत से जाति वालों से जो मेरी अवस्था के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता था और अपने बाप दादों के व्यवहारों में बहुत ही उत्तेजित था।
( acts 13: 9) इस परिवर्तन के बाद  शाऊल  के पॉल के रूप में जाना गया। पॉल अरब, दमिश्क, यरूशलेम, सीरिया और अपने पैतृक किलिकिया में समय बिताया है, और बरनबास अन्ताकिया में चर्च में उन लोगों को सिखाने के लिए उसकी मदद ली 11:25)। दिलचस्प है, शाऊल ने फिलिस्तीन के बाहर संचालित इस बहुजातीय चर्च की स्थापना (11: 19-21)। पॉल देर से 40 ईस्वी पॉल नए नियम कि पुस्तकों के कई लिखा में ,तीन मिशनरी यात्रा के अपने पहले ले लिया। अधिकांश
किताबे है
1 और 2 कोरिंथियंस,
 गलतियों,
 फिलिप्पियों
, 1 और 2 थिस्सलुनीकियों,
फिलेमोन,
इफिसियों,
 कुलुस्सियों,
 1 और 2 तीमुथियुस
 टाइटस
 और लिखा था। इन 13 "पत्र" (किताबें) उच्य कोटि कि साहित्य " के लिए और अपने धर्मशास्त्र के प्राथमिक स्रोत हैं। जैसा कि पहले उल्लेख, प्रेरित के काम  की पुस्तक से  हमें पौलुस के जीवन और समय पर एक ऐतिहासिक कार्य दिखाई  देता है। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन का एक भाग रोम ओर दुनिया भर में मसीह यीशु का प्रचार, और  महान व्यक्तिगत जोखिम (2 कुरिन्थियों 11: 24-27) पर किया । यह माना जाता है कि पॉल रोम में  60 ईस्वी में एक शहीद की मौत मर गया। में एक बात और बातदू रोम   कि चर्च कि नीव पौल के द्वारा ही पड़ी इस बात का प्रमाण बाइबिल में मिलाता है 28:30 और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा॥
इसलिये पौल हमे सबसे उतम सलाह देता है  
10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे॥
12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
"(फिलिप्पियों 1: 12-14
एक और जोश कि गवाही पौल 2 ११ :22  कुरिथियो देता है
22 क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ इस्त्राएली हैं? मैं भी हूँ:क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं ?मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं?
23 (मैं पागल की नाईं कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं!अधिक परिश्रम करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार बार मृत्यु के जोखिमों में।
24 पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25 तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र मेंकाटा।
26 मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में;
27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28 और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है।
29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?
30 यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर करूंगा।
31 प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता।
प्रश्न है ?
आज हम पौल के जीवन से सिखा सकते है
परमेश्वर किसी को भी कभी भी बुला सकता है
कि हम केसे भी हो यीशु के राज्य के योग्य हो सकते है
हमे उसके राज्य के लिए अभिषेक मिला है कोए यह नही कह सकता है कि हम ने अभिषेक प्राप्त नही किया है
परमेश्वर के राज्य के लिए हमारा जोश ही हमरी गवाही है

Saturday, 20 August 2016

जलन- ईर्ष्या ( पाप ),jealous sin

जलन ईर्ष्या ( पाप )

जलन ईर्ष्या एक प्रतिदंदी भावना है |कि मै  ही सबसे श्रेष्ट हुँ| इसे इस प्रकार कह सकते है |यह एक अविश्वास या डर से पैदा हुई बैचेनी है ,जो सह नहीं सकती | बाइबिल कहती है, कि प्रतिज्ञा का परमेश्वर है वह हमारा पूरा ध्यान रखता है|   ईर्ष्या से हम अपने आप को ही दुःख देते है, न कि दूसरो को | उन लोगों के सामने खुश रहिये जो आपको पसंद नहीं करते। यह उन्हें जलाने के लिए काफी है ।   शांत रहिये और मुस्कुराते रहिये ! यह काफी है आपसे जलने वालों को और जलाने के लिए !
“एक समझदार व्यक्ति वह है, जो दूसरों के गुणों और विशेषताओं को देखता है, उनसे सीखता है ! न की दूसरों से…
ईर्ष्या (लैटिन, Invidia), लालच और वासना की तरह, एक लालची इच्छा की विशेषता है। यह लक्षण या किसी और की संपत्ति की दिशा में एक दु: खी या नाराजगी लोभ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह गुमान से उठता है, और अपने पड़ोसी से, एक आदमी को
दुर्भावनापूर्ण ईर्ष्या है कि वे दोनों में से  लक्षण, स्थिति, योग्यता, या पुरस्कार के प्रति असंतोष कि भावना महसूस हो  यही  ईर्ष्या  है। एक फर्क है कि ईर्ष्या भी एक मह्त्कछि इच्छा और यह एक लालच जैसी  है। ईर्ष्या सीधे दस आज्ञा से संबंधित हो सकती  है, विशेष रूप से, "न तो  लालच करना  ... कुछ भी है कि अपने पड़ोसी के अंतर्गत आता है।" (एक बयान यह भी है कि लालच से संबंधित हो सकता है)। डांटे 'के रूप में एक उनकी अन्य पुरुषों से वंचित करने की इच्छा "ईर्ष्या को  परिभाषित किया। ईर्ष्या की घाटी में, ईर्ष्या के लिए सजा उनकी आँखों सिलना ,तार के साथ बंद क्योंकि वे दूसरों के लिए  देखने से पाप कि  खुशी प्राप्त की है।
 सेंट थामस एक्विनास के अनुसार, संघर्ष ईर्ष्या से जगाये  तीन चरण हैं:
1पहले चरण के दौरान, ईर्ष्या व्यक्ति दूसरे कि  प्रतिष्ठा को  कम करने के लिए प्रयास करता है; मध्यम चरण में, ईर्ष्या व्यक्ति को  प्राप्त करता है या तो "दूसरे के दुर्भाग्य पर खुशी" (अगर वह विफल रहता है)
2 "दूसरे की समृद्धि पर दु:ख" या (वह दूसरे व्यक्ति को बदनाम करने में सफल होता है); क्योंकि "दु: ख का कारण बनता घृणा" शब्द, घृणा है।
3 ईर्ष्या, पीछे कैन ने अपने भाई, हाबिल की हत्या प्रेरणा होने के लिए कहा जाता है के रूप कैन एबल डाह करते थे, और खत्म हो चुका है हाबिल के बलिदान का समर्थन किया।
किसी  ने कहा है , कि ईर्ष्या दुख का सबसे शक्तिशाली कारणों में से एक है  जबकि उन्हें दूसरों पर दण्ड से आग्रह करता हूं देने के लिए  ईर्ष्या  को दु: ख लाने वाला है।
सबसे व्यापक रूप से स्वीकार विचारों के अनुसार, केवल गर्व ,आत्मा के मध्य  पापों के बीच ईर्ष्या से भी अधिक नीचे होता है। बस गौरव की तरह, ईर्ष्या शैतान के साथ सीधे संबद्ध किया गया है, राज्यों के लिए:। "शैतान की ईर्ष्या दुनिया के लिए मौत लायी ,"

Monday, 1 August 2016

Young Jesus in Temple Luke 2:42-52 (Hindi )


बारह वर्ष का यीशु मंदिर में 
लुका 2 :४२-52
42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए।
43 और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे।
44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे।
45 पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए।
46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया।
47 और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे।
48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।
49 उस ने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?
50 परन्तु जो बात उस ने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा।
51 तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं॥
52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया॥

आज यीशु मंदिर क्यों ?
1 पापियों के उद्धार के लिये
2 व्यवस्था को पूरा करने के लिये
3 मार्गदर्शन के लिये

1 पापियों के उद्धार के लिये 
Luke 5:32 मैं धमिर्यों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूं।
2 व्यवस्था को पूरा करने के लिये 
मत्ती 5:17-18 18 लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
19 इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
आज मंदिर मे यीशु शात्रियो से चर्चा कर  रहे हे |तो यह  पर एक वचन पूरा होता हे,यह दो आज्ञा एक पूरी होती हें
 तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना॥ 
 तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना। 
व्यवस्था कि बात आते ही मेरे मन में आया कि व्यवस्था कौनसी हें ? यह वे  दस आज्ञाऐ  है जो परमेश्वर ने सिनैया पर्वत पर मूसा को ,पत्थर कि पट्टी पर लिखा कर दि थी जिसे मूसा दोनों हाथों में लिये हुआ लौटा था |एक हाथ  में पांच ,दुसरे  हाथ  पांच यही व्यवस्था हम सब के लिया है | चाहे हम कोई क्यों ना हो |हमारे लिए यही व्यवस्था हें |
यीशु ने मानुष रूप आकर इन सारी बातो पूरा किया,कि  हम उसका अनुश्रण कर सके |हम व्यवस्था की बातो को पूरा करने के लिए चल सके |रोमियो की पत्रि ३ :३१ कहता हे की हम व्यवस्था के द्वारा स्थिर होते हे जब स्थिर होज़े तो चलेगे भी |
यह बात को यहोशु ने इसरयालियो को आपने जीवन के आखरी दिन मे कही थी
Book of Joshua  1:7-8 इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ हो कर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बांए, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सफल होगा।
8 व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।
मेरा आज का सन्देश जवानो के लिये है |मे बताना चाहता हु, कुशल का मार्ग क्या है ?
नीतिवचन 3:1-18
1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना;
2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा।
3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उन को अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना।
4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा॥
5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।
6 उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।
7 अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।
8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियां पुष्ट रहेंगी।
9 अपनी संपत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना;
10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डोंसे नया दाखमधु उमण्डता रहेगा॥
11 हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना,
12 क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उस को डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है॥
13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे,
14 क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है।
15 वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।
16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है।
17 उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उस को पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं॥
16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है।

1  आज्ञाओं को -अपने हृदय में रखे से
आयु में वृधि होती है ,कुशल का मार्ग तेयार  होता हें |
2 - परमेश्वर का भय मानना से - चंगाई प्राप्त होती हें ,शारीर मजबूत होता हें -बुदिमान प्राप्त होती हें |
3 - बुद्धि से धन कि प्राप्ति होती हें |यानि
आज्ञाओं का पालन करो और आशीष पाओ, दोनों हाथो बटोरो लम्बी आयु के साथ धन और महिमा साथ |

मंदिर जाने के कुछ फायदे हें |

1 जब हम मंदिर  जाते है ,तो प्राथना  करते है, और आशीष कि खोज करते है |हम हर तरीके से परमेश्वर को आदर करते है,कि हमारी इच्छा की पुर्ति हो ,इसलिए हम अपने सिर को झुकते है |
2 परमेश्वर के पास बैठने से हम शान्ति का अनुभव करते हए और हम में  पूरी ताजगी  आ जाती  है | कितना ही दुःख क्यों न हो,यही दिल -दिमाग आराम मिलता है |
3 यदि हम मंदिर  कि बनाबट देखे इस कि छत ऊपर से निचे कि ओर होती है ,और इसी जगह पर आवाज इतनी मधुर हो जाती है कि हर एक शन्ति से सुनते है | यही शांति से पॉजिटिव एनर्जी मिलती है |
4 चर्च में हमेशा पॉजिटिव एनर्जी मिलती है,इससे ऐसा अनुभव होता है कि हमारी सफलता कि हमारे पास है |
और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा॥
3 मार्गदर्शन के लिये
John 14:6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं;