Monday, 14 November 2016

Do not judge matt 7:1-2 (Hindi ) दोष मत लगाओ


दोष
सुसमाचार के अनुसार यह विषय दो स्थानों पर मिलता है
दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जाये | लुका 6:37 -38,मती का सुसमाचार 7 :1-2
यह दोष का लगने कि क्रिया ,इंसान में स्वभाव से है| यह आदम से हम तक पहुची है |यह बड़ा प्रश्न और चेतावनी भी है ? इसलिए हम इसके लाभ और हानि पर विचार कर सकते है |
यह दोष लगाने की क्रिया हम इंसान के स्वभाव में है|इसलिये हम बिना विचार के हम किसी के विरुद्ध कुछ भी बोला देते है,जो भी हम अपने विचार आया कह देते है |जिससे हमे फायदा होना चाहिये |
बूमरेंग 
यह शिकार करने का हथियार है,जिससे प्राचीन कल में लोग शिकार में इस्तेमाल करते थे,जिसे मनुष्य एक स्थान से फेक कर प्रयोग करते थे,इसे जैसे हम फेकते है यह वैसे ही वापस अपने स्थान पर आता है |आज यही वचन हमे से स्पष्ट रीति से कहता है (बाइबिल मति 7 :1-2) दोष मत लगाओ कि तुम पर भी दोष लगाया जायेक्योकि जिस प्रकार तुम दोष लगते हो ,उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाये और जिस नाप से तुम नापते हो ,उसी नाप से तुम्हारे लिए नापा जायगा,यही है बूमरेंग कि प्रकिर्या है |
कुछ लोग हमेशा दूसरो मै दोष खोजते रहते है उन्हें अच्छे गुण दिखाई ही नही देते है और हमेशा कुछ न कुछ कहते ही रहते है ऐसा कह कर वे अपने सहकर्मी के साथ ,परमेश्वर कि द्रष्टि में भी दोषी और न्याय के भागी ठहराते है | जब एक ऐसा व्यक्ति ,जो दूसरो में दोष देखता है तो वह ऐसा करके ,वह अपने दोषो कि ओर ध्यान खिचता है |ऐसे दोष जो स्वम उन्हें नही देखा सकता है मति 7: 5 हें कपटी पहले अपनी आँख का लटठा निकाल ले तब तू अपने भाई की आँख तिनका निकला सकेगा | दोष लगाने के कार्य में सबसे पहले सुसमाचार से जुड़े लोग ही ऐसा कार्य में आगे है |पादरी और प्रचारक अपने कार्य में समुदाय से मिलते ही एक दुसरे पर दोष लगा कर अपनी प्रतिष्ठा को बड़ते है |उन्हें ऐसा लगता है ,कि हमारा कार्य सबसे अच्छे है परन्तु वे अपने लक्ष्य को भूल जाते है |
इस प्रकार यीशु मसीह अपने चेलो को एक सच्चा न्याय करना सिखाना चाहते थे यदि वे दूसरो के शिक्षक बनाना चाहते है|यदि चेलो को इस समझ नही हुई तो वे अंधे होकर, दुसरे को कैसेमार्ग दिखायागे | इस विपरीत हम दूसरो मै दोष निकला कर उन्हें पथ भ्रष्ट नहीं कर देगे |यह दोष निकालने का तरीका गलत है “ झूठा साक्षी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो झूठ बोला करता है, वह न बचेगा।नीतिवचन 19:5 ‘’ इसलिये हमे दोष लगाने में ,न्याय बचाना चाहिए मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ॥ यहुन्ना 7:24
1.उपरी तौर से न्याय (Superficial judgment)
लुका 7:36 -39 किसी फरीसी ने उस से बिनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा।
37 और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई।
38 और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बारबार चूमकर उन पर इत्र मला।
39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिनी है।इस घटना से लोग मन मै सोच कर न्याय कर रहे है यह न्याय नहीं है |
2 पाखंडी न्याय ( Hypocritical judgment )
रोमियो कि पत्री 2:1-2 हे दोष लगाने वाले, तू कोई क्यों न हो; तू निरुत्तर है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिये कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।  और हम जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करने वालों पर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3.क्षमा रहित न्याय (Unforgiving judgment)
बाइबिल कहती है कि न्याय क्षमा के बिना अधुरा है  मति 5 :6  धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। न्याय दया के साथ हो,इस के विपरीत तीतुसहमे एक व्यवहारिक सलाह भी देता कि हम  किसी को बदनाम न करें; झगडालू न हों: पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें। तीतुस 3:2
4.स्वम सोच न्याय (Self righteous judgment)
जब न्याय कि बात हो तो ,हम अपनी सोच से नही सोचे कि उस परिपेच्छ में सोचे कि वंहा हमारा अभिमान (घमंड )कार्य तो नही कर रहा है |इसलिये याकूब ने अपनी पत्री में लिखा है ,याकूब 4:6    वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। जैसेअनुग्रह  हमें मिला है वैसे ही हम दूसरो के साथ करे |
5.आसत्य न्याय (Unture Judgment ) 
जो सत्य नही और हम जानते भी नही है तब हमारी प्रतिक्रिया शांत होना चाहिए ,व्यावहारिक नियम यही कहता है कि हम शांत रहे |परमेश्वर का वचन कहता है
नीतिवचन वचन 18 :5 दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है।
मार्गदर्शन के लिए कारण है 
जब हम दूसरो पर दोष लगते है तो हमे अपने आप को जचने कि आवश्कता है कि हुम उसे नही पर अपने आप को देखे |
दोषों के कारण हम लोगो कि सरहना नही कर सकते परन्तु एक दोष के करण लाखो अच्छाईयो  को अनदेखा भी नही कर सकते है |
दोष देखने कि आदत के कारण हमारी उन्नति रुक जाती क्यों ?हुम हर समय अपने न्याय और इच्छा को सर्वोतम मानते है और दुसरे को दोषी ठहरा कर अपने लिए दुःख और निराशा मुफ्त में उठा लेते हें उसी के साथ संघर्ष करते रहते  ,हम अपनी उन्नति को नही देखते है |
हम दूसरो के दोष के कारण अपने को दुखी बनाते है |
हे भाइयों, एक दूसरे की बदनामी न करो, जो अपने भाई की बदनामी करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है; और यदि तू व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलने वाला नहीं, पर उस पर हाकिम ठहरा। याकूब 4:11