3 मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बाप दादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
4 और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनों को बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंथ को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला।
5 इस बात के लिये महायाजक और सब पुरिनये गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहां हों उन्हें भी दण्ड दिलाने के लिये बान्धकर यरूशलेम में लाऊं।
6 जब मैं चलते चलते दमिश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?
8 उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है।
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता था उसका शब्द न सुना।
10 तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा।
11 जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 और हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहने वाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया।
13 और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं ।
14 तब उस ने कहा; हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने।
15 क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने उन बातों का गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं।
16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।
17 जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया।
18 और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।
19 मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करने वालों को बन्दीगृह में डालता जगह जगह आराधनालय में पिटवाता था।
20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाया जा रहा था तब मैं भी वहां खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके घातकों के कपड़ों की रखवाली करता था।
इस महीने में हम बाइबिल के महान योद्धा के जीवन पर विचार कर रहे है इसी श्रृंखला में
आज हम शाऊल के जीवन पर विचार करेगे कि वह कौन है ? उसका जीवन कैसा था,उसकी शिक्षा और पारिवारिक सिथति ? ओए हम प्रेरित पौलुस के जीवन से क्या क्या सीख सकते हैं?
साधारण से पौलुस ने परमेश्वर के राज्य के लिए असाधारण काम किया पॉल की कहानी यीशु मसीह के द्वारा पुरे उद्धार की एक कहानी है यह एक सच्ची गवाही है| कि कोई भी परमेश्वर की कृपा से परे नहीं है।
शाऊल ने अपनी गवाही में हमें बड़े ही साफ रीति से कहा है| में किलकिया के तरसुस में जन्मा यहूदी मनुष्य हूँ | यह जगह वर्त्तमान में तुर्की में है,जो रोमन समाराज्य का हिस्सा था इसलिए पौल को जन्मा से रोमन नागरिकता मिली थी या कारण यहूदी होते हुए भी वह रोमन नागरिक था|
शाऊल के मातापिता यहूदी जाति के बिन्यामिन गोत्र से है, यहूदी लोग अपने परमेश्वर कि आज्ञा पालन करने वाले एव उस पर चलने वाले और अपने बच्चो को परमेश्वर के वचन कि शिक्षा देने कोइ कमी नहीं छोड़ते है| क्योकि परमेश्वर कि आज्ञा है
व्यबस्था विवरण 4:9-10
9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उन को भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।
10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा था, कि उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं।
इसलिए यहूदी लोग धर्म कि रक्षा के लिय, धर्म के कानून का पालन बड़ी सकती से करते है
क्योकि उन्होंने सिखा था कि परमेश्वर कि आज्ञा ना मानाने का फल क्या होता है ४०० साल कि बन्दुबाई के दुःख को देखा था नाबोकद्नेसर का आत्यचार सह था कि यह सब आज्ञा ना मानाने के कारण हुआ था |
इसलिए तेरह साल की उम्र में शाऊल को फिलिस्तीन को भेजा गया जंहा गम्लीएल नाम के एक रब्बी ने शाऊल को यहूदी इतिहास, भजन और नबियों के कामों और व्यबस्था को जानने के लिए अवसर मिला, उनकी शिक्षा के लिए पांच या छह साल का समय में ऐसी बातें सीखा होगा।और प्राचीन काल में शिक्षा का स्वरूप सवाल और जवाब कि शैली के रूप में विकसित किया गया था| वह यह उस का "अभियोगात्मक भाषण।" यह अभिव्यक्ति का यह तरीका rabbis यहूदी कानून की बारीकियों पर बहस,या तो धर्म रक्षा या जो लोग कानून तोड़ दिया पर मुकदमा चलाने में मदद हो । शाऊल में यही गुण पूरी तरीके से विधमान था ,कि वह एक आच्छे, एक वकील बनने के लिए, और सभी संकेतों और 70पुरनियो कि महासभा, पुरुषों के लिए जो यहूदी जीवन और धर्म पर शासन करने और यहूदी सुप्रीम कोर्ट का सदस्य बनने की ओर इशारा करता है ।
ऐसा विश्वास जो समझौता करने के लिए अनुमति नहीं देता है । शाऊल अपने विश्वास के लिए पूरे जोश के साथ था, और यह एक ऐसा उत्साह है जो धार्मिक कट्टारपंथी (उग्रवाद) के रास्ते पर शाऊल का नेतृत्व करता है।
गम्लीएल कौन है ?
गम्लीएल एक फरीसी रब्बी ( गुरु )है जो यहूदी गम्लीएल यहूदी कानून का जानकर और एक फरीसी चिकित्सक के रूप में मान्यता प्राप्त है प्रेरितों 5 के 34 में एक आदमी, वणर्न है जो सभी यहूदियों, को यीशु के प्रेरित कि निंदा नहीं करने के लिए बात की थी वह मह्सभा में गम्लीएल ही बोलता है, और यन्ही को पॉल यहूदी शिक्षक के रूप में बताता है प्रेरित:22:3
1 शताब्दी ईस्वी में महासभा में एक अग्रणी अधिकार था। कि शिमोन बेन हिल्लेल का पुत्र है, और महान यहूदी शिक्षक Hillel एल्डर का पोता था, जो यरूशलेम (70 ई) में दूसरा मंदिर के विनाश से पहले बीस साल निधन हो गया।
जोश के साथ ---विश्वाश के साथ
यही शिक्षा के कुछ कारण है कि
1.शाऊल स्टीफन की सुनवाई में उपस्थित हुआ और उसके पथराव और मौत के लिए मौजूद गवाह बना था 07:58 – 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े उतार रखे।
2-5: 39 -42, परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
40 तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
यह सब को देख कर शाउल का जोश, अपनी सीमा से ज्यादा हो गया था वह
परमेश्वर के नाम पर अपने धर्म कि रक्षा के लिए , शाऊल ईसाइयों की खोज में अधिक क्रूर हो गया। एक धार्मिक आतंकवादी की तुलना में अधिक शातिर खासकर जब उनका मानना है कि वह निर्दोष लोगों की हत्या करके प्रभु की इच्छा पूरी कर रहा है।
8: 3 शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर घर घुसकर पुरूषों और स्त्रियों को घसीट घसीट कर बन्दीगृह में डालता था॥
परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था ऐसा जोश था कि वह जो कर रह है वह सब परमेश्वर के कर रहे है यह सोच शाऊल कि थी ,जब कि यह सोच सच्चाई से परे है | इस लिए वह तेजी से यरूशलेम के बाद आस पास के स्थानों में ,गाँव में और दुसरे शहरों में भी शाउल मसीहियो को मार रहा था |इसलिए उसने महायाजक से चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, जो यरूशलेम से दमिश्क को 150 मील की दुरी पर , सड़क पर यीशु मसीह के साथ शाऊल की मुडभेड यीसू से होती है आध्याय 9 यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले, वह दमिश्क में सभाओं को पत्र के लिए महापुरोहित से पूछा था, किसी भी ईसाइयों को पीटने मरने के लिए अनुमति पत्र दे शाउल हर काम को तरीके से करता है मसीह को मरता तो भी वह पत्र लेकर जाता है क्योकि वह धर्म रक्षक है और उन्हें यरूशलेम में कैदकर सजा देने के लिया आ रहा है ।
कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: र यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है? हे प्रभु, तू कौन है?
में यीशु हूँ
यह शाउल कि ,यीशु के साथ शाऊल की पहली मुठभेड़ नहीं हो सकती है,
जैसा कि कुछ विद्वानों का मत है कि युवा शाऊल, यीशु के नाम को जानता है ,हो सकता है और यही भी हो सकता है कि वह यीसू कि म्रत्यु का गवाह हो सकता है
इसएक ही पल में , शाऊल का जीवन उल्टा हो गया था। एक बलवान पुरुष जिस के पास बल है,शक्ति है|फिर भी आज यीशु सामने निर्बल दिखाई देते है |शाउल को भी आज मालूम हुआ कि मेरे काम सब मैले चिथड़ो के सामना है इन सब का कोईं मोल नही है उसके राज्य सब बेकार है हम ही प्रभु के सामने वेसे ही हें,हम भी कुछ भी करे हमरे सबसे अच्छे काम में यीसू नही तो सब बेकार है |
प्रभु के प्रकाश ने उसे अंधा, कर दिया और जैसा कि उन्होंने कहा कि वह यात्रा के लिए उसके साथीयो पर निर्भर होना पड़ा। यीशु ने आदेश दिए हैं, कि शाऊल दमिश्क को जा रखा है जो तुझे करना है वह कहा जायेगा |
तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ? What shall I do, LORD?
इस का उतर है यहुन्ना 6 : 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो। उस पर विश्वाश किया
पहली बार वह एक दुष्ट आदमी के रूप में शाऊल को अपनी प्रतिष्ठा का पता चला था तब यीशु ने आदेश दिया
परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्त्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है।
16 और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा।
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।
18 और तुरन्त उस की आंखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; फिर भोजन कर के बल पाया॥ कि हनन्याह नाम के एक आदमी के साथ संपर्क बनाने के लिए। लेकिन प्रभु ने हनन्याह को बताया कि शाऊल को मैने "चुना है " कि गैर-यहूदियों, राजाओं और इसराइल (9:15) के बच्चों से पहले उसका नाम ले जाने के लिए और इतने (9:16)उसे कितने दुःख उठने पड़ेगे हनन्याह ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन किया है और
वही जोश के साथ वचन में लिखा है ---
शाऊल, जिस पर वह हाथ रखे पाया, और उसे यीशु मसीह के उनके सपने के बारे में बताया। प्रार्थना के माध्यम से, शाऊल, पवित्र आत्मा (V.17) प्राप्त उसकी दृष्टि पाया आ गया और बपतिस्मा दिया गया था (v.18)। शाऊल ने तुरंत सभाओं यीशु का प्रचारकर और कह रही है वह परमेश्वर के पुत्र (v.20) में चला गया है। शाऊल की प्रतिष्ठा को अच्छी तरह से जाना जाता था और लोग, हैरानी और उलझन में थे। यहूदियों ने सोचा कि वह ईसाई (v.21)को दूर लेने के लिए आया था। आज खुद मसीह का हो गया है शाऊल का साहस वृद्धि के लिए में दमिश्क में रहने वाले यहूदियों साबित करना है कि यीशु मसीह (ने v.22) था शाऊल के तर्कों से चकित थे। पौल अपनी गवाही में गलतियों कों लिखा 1:१२-१४
12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13 यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था।
14 और अपने बहुत से जाति वालों से जो मेरी अवस्था के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता था और अपने बाप दादों के व्यवहारों में बहुत ही उत्तेजित था।
( acts 13: 9) इस परिवर्तन के बाद शाऊल के पॉल के रूप में जाना गया। पॉल अरब, दमिश्क, यरूशलेम, सीरिया और अपने पैतृक किलिकिया में समय बिताया है, और बरनबास अन्ताकिया में चर्च में उन लोगों को सिखाने के लिए उसकी मदद ली 11:25)। दिलचस्प है, शाऊल ने फिलिस्तीन के बाहर संचालित इस बहुजातीय चर्च की स्थापना (11: 19-21)। पॉल देर से 40 ईस्वी पॉल नए नियम कि पुस्तकों के कई लिखा में ,तीन मिशनरी यात्रा के अपने पहले ले लिया। अधिकांश
किताबे है
1 और 2 कोरिंथियंस,
गलतियों,
फिलिप्पियों
, 1 और 2 थिस्सलुनीकियों,
फिलेमोन,
इफिसियों,
कुलुस्सियों,
1 और 2 तीमुथियुस
टाइटस
और लिखा था। इन 13 "पत्र" (किताबें) उच्य कोटि कि साहित्य " के लिए और अपने धर्मशास्त्र के प्राथमिक स्रोत हैं। जैसा कि पहले उल्लेख, प्रेरित के काम की पुस्तक से हमें पौलुस के जीवन और समय पर एक ऐतिहासिक कार्य दिखाई देता है। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन का एक भाग रोम ओर दुनिया भर में मसीह यीशु का प्रचार, और महान व्यक्तिगत जोखिम (2 कुरिन्थियों 11: 24-27) पर किया । यह माना जाता है कि पॉल रोम में 60 ईस्वी में एक शहीद की मौत मर गया। में एक बात और बातदू रोम कि चर्च कि नीव पौल के द्वारा ही पड़ी इस बात का प्रमाण बाइबिल में मिलाता है 28:30 और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा॥
इसलिये पौल हमे सबसे उतम सलाह देता है
10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे॥
12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
"(फिलिप्पियों 1: 12-14
एक और जोश कि गवाही पौल 2 ११ :22 कुरिथियो देता है
22 क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ इस्त्राएली हैं? मैं भी हूँ:क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं ?मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं?
23 (मैं पागल की नाईं कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं!अधिक परिश्रम करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार बार मृत्यु के जोखिमों में।
24 पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25 तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र मेंकाटा।
26 मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में;
27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28 और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है।
29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?
30 यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर करूंगा।
31 प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता।
प्रश्न है ?
आज हम पौल के जीवन से सिखा सकते है
परमेश्वर किसी को भी कभी भी बुला सकता है
कि हम केसे भी हो यीशु के राज्य के योग्य हो सकते है
हमे उसके राज्य के लिए अभिषेक मिला है कोए यह नही कह सकता है कि हम ने अभिषेक प्राप्त नही किया है
परमेश्वर के राज्य के लिए हमारा जोश ही हमरी गवाही है
4 और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनों को बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंथ को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला।
5 इस बात के लिये महायाजक और सब पुरिनये गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहां हों उन्हें भी दण्ड दिलाने के लिये बान्धकर यरूशलेम में लाऊं।
6 जब मैं चलते चलते दमिश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है?
8 उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है।
9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता था उसका शब्द न सुना।
10 तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा।
11 जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
12 और हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहने वाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया।
13 और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं ।
14 तब उस ने कहा; हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने।
15 क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने उन बातों का गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं।
16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।
17 जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया।
18 और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।
19 मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करने वालों को बन्दीगृह में डालता जगह जगह आराधनालय में पिटवाता था।
20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाया जा रहा था तब मैं भी वहां खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके घातकों के कपड़ों की रखवाली करता था।
इस महीने में हम बाइबिल के महान योद्धा के जीवन पर विचार कर रहे है इसी श्रृंखला में
आज हम शाऊल के जीवन पर विचार करेगे कि वह कौन है ? उसका जीवन कैसा था,उसकी शिक्षा और पारिवारिक सिथति ? ओए हम प्रेरित पौलुस के जीवन से क्या क्या सीख सकते हैं?
साधारण से पौलुस ने परमेश्वर के राज्य के लिए असाधारण काम किया पॉल की कहानी यीशु मसीह के द्वारा पुरे उद्धार की एक कहानी है यह एक सच्ची गवाही है| कि कोई भी परमेश्वर की कृपा से परे नहीं है।
शाऊल ने अपनी गवाही में हमें बड़े ही साफ रीति से कहा है| में किलकिया के तरसुस में जन्मा यहूदी मनुष्य हूँ | यह जगह वर्त्तमान में तुर्की में है,जो रोमन समाराज्य का हिस्सा था इसलिए पौल को जन्मा से रोमन नागरिकता मिली थी या कारण यहूदी होते हुए भी वह रोमन नागरिक था|
शाऊल के मातापिता यहूदी जाति के बिन्यामिन गोत्र से है, यहूदी लोग अपने परमेश्वर कि आज्ञा पालन करने वाले एव उस पर चलने वाले और अपने बच्चो को परमेश्वर के वचन कि शिक्षा देने कोइ कमी नहीं छोड़ते है| क्योकि परमेश्वर कि आज्ञा है
व्यबस्था विवरण 4:9-10
9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उन को भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।
10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा था, कि उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने लड़के बालों को भी यही सिखाएं।
इसलिए यहूदी लोग धर्म कि रक्षा के लिय, धर्म के कानून का पालन बड़ी सकती से करते है
क्योकि उन्होंने सिखा था कि परमेश्वर कि आज्ञा ना मानाने का फल क्या होता है ४०० साल कि बन्दुबाई के दुःख को देखा था नाबोकद्नेसर का आत्यचार सह था कि यह सब आज्ञा ना मानाने के कारण हुआ था |
इसलिए तेरह साल की उम्र में शाऊल को फिलिस्तीन को भेजा गया जंहा गम्लीएल नाम के एक रब्बी ने शाऊल को यहूदी इतिहास, भजन और नबियों के कामों और व्यबस्था को जानने के लिए अवसर मिला, उनकी शिक्षा के लिए पांच या छह साल का समय में ऐसी बातें सीखा होगा।और प्राचीन काल में शिक्षा का स्वरूप सवाल और जवाब कि शैली के रूप में विकसित किया गया था| वह यह उस का "अभियोगात्मक भाषण।" यह अभिव्यक्ति का यह तरीका rabbis यहूदी कानून की बारीकियों पर बहस,या तो धर्म रक्षा या जो लोग कानून तोड़ दिया पर मुकदमा चलाने में मदद हो । शाऊल में यही गुण पूरी तरीके से विधमान था ,कि वह एक आच्छे, एक वकील बनने के लिए, और सभी संकेतों और 70पुरनियो कि महासभा, पुरुषों के लिए जो यहूदी जीवन और धर्म पर शासन करने और यहूदी सुप्रीम कोर्ट का सदस्य बनने की ओर इशारा करता है ।
ऐसा विश्वास जो समझौता करने के लिए अनुमति नहीं देता है । शाऊल अपने विश्वास के लिए पूरे जोश के साथ था, और यह एक ऐसा उत्साह है जो धार्मिक कट्टारपंथी (उग्रवाद) के रास्ते पर शाऊल का नेतृत्व करता है।
गम्लीएल कौन है ?
गम्लीएल एक फरीसी रब्बी ( गुरु )है जो यहूदी गम्लीएल यहूदी कानून का जानकर और एक फरीसी चिकित्सक के रूप में मान्यता प्राप्त है प्रेरितों 5 के 34 में एक आदमी, वणर्न है जो सभी यहूदियों, को यीशु के प्रेरित कि निंदा नहीं करने के लिए बात की थी वह मह्सभा में गम्लीएल ही बोलता है, और यन्ही को पॉल यहूदी शिक्षक के रूप में बताता है प्रेरित:22:3
1 शताब्दी ईस्वी में महासभा में एक अग्रणी अधिकार था। कि शिमोन बेन हिल्लेल का पुत्र है, और महान यहूदी शिक्षक Hillel एल्डर का पोता था, जो यरूशलेम (70 ई) में दूसरा मंदिर के विनाश से पहले बीस साल निधन हो गया।
जोश के साथ ---विश्वाश के साथ
यही शिक्षा के कुछ कारण है कि
1.शाऊल स्टीफन की सुनवाई में उपस्थित हुआ और उसके पथराव और मौत के लिए मौजूद गवाह बना था 07:58 – 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थरवाह करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े उतार रखे।
2-5: 39 -42, परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
40 तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
यह सब को देख कर शाउल का जोश, अपनी सीमा से ज्यादा हो गया था वह
परमेश्वर के नाम पर अपने धर्म कि रक्षा के लिए , शाऊल ईसाइयों की खोज में अधिक क्रूर हो गया। एक धार्मिक आतंकवादी की तुलना में अधिक शातिर खासकर जब उनका मानना है कि वह निर्दोष लोगों की हत्या करके प्रभु की इच्छा पूरी कर रहा है।
8: 3 शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर घर घुसकर पुरूषों और स्त्रियों को घसीट घसीट कर बन्दीगृह में डालता था॥
परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था ऐसा जोश था कि वह जो कर रह है वह सब परमेश्वर के कर रहे है यह सोच शाऊल कि थी ,जब कि यह सोच सच्चाई से परे है | इस लिए वह तेजी से यरूशलेम के बाद आस पास के स्थानों में ,गाँव में और दुसरे शहरों में भी शाउल मसीहियो को मार रहा था |इसलिए उसने महायाजक से चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, जो यरूशलेम से दमिश्क को 150 मील की दुरी पर , सड़क पर यीशु मसीह के साथ शाऊल की मुडभेड यीसू से होती है आध्याय 9 यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले, वह दमिश्क में सभाओं को पत्र के लिए महापुरोहित से पूछा था, किसी भी ईसाइयों को पीटने मरने के लिए अनुमति पत्र दे शाउल हर काम को तरीके से करता है मसीह को मरता तो भी वह पत्र लेकर जाता है क्योकि वह धर्म रक्षक है और उन्हें यरूशलेम में कैदकर सजा देने के लिया आ रहा है ।
कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: र यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है? हे प्रभु, तू कौन है?
में यीशु हूँ
यह शाउल कि ,यीशु के साथ शाऊल की पहली मुठभेड़ नहीं हो सकती है,
जैसा कि कुछ विद्वानों का मत है कि युवा शाऊल, यीशु के नाम को जानता है ,हो सकता है और यही भी हो सकता है कि वह यीसू कि म्रत्यु का गवाह हो सकता है
इसएक ही पल में , शाऊल का जीवन उल्टा हो गया था। एक बलवान पुरुष जिस के पास बल है,शक्ति है|फिर भी आज यीशु सामने निर्बल दिखाई देते है |शाउल को भी आज मालूम हुआ कि मेरे काम सब मैले चिथड़ो के सामना है इन सब का कोईं मोल नही है उसके राज्य सब बेकार है हम ही प्रभु के सामने वेसे ही हें,हम भी कुछ भी करे हमरे सबसे अच्छे काम में यीसू नही तो सब बेकार है |
प्रभु के प्रकाश ने उसे अंधा, कर दिया और जैसा कि उन्होंने कहा कि वह यात्रा के लिए उसके साथीयो पर निर्भर होना पड़ा। यीशु ने आदेश दिए हैं, कि शाऊल दमिश्क को जा रखा है जो तुझे करना है वह कहा जायेगा |
तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ? What shall I do, LORD?
इस का उतर है यहुन्ना 6 : 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो। उस पर विश्वाश किया
पहली बार वह एक दुष्ट आदमी के रूप में शाऊल को अपनी प्रतिष्ठा का पता चला था तब यीशु ने आदेश दिया
परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्त्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है।
16 और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा।
17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।
18 और तुरन्त उस की आंखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; फिर भोजन कर के बल पाया॥ कि हनन्याह नाम के एक आदमी के साथ संपर्क बनाने के लिए। लेकिन प्रभु ने हनन्याह को बताया कि शाऊल को मैने "चुना है " कि गैर-यहूदियों, राजाओं और इसराइल (9:15) के बच्चों से पहले उसका नाम ले जाने के लिए और इतने (9:16)उसे कितने दुःख उठने पड़ेगे हनन्याह ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन किया है और
वही जोश के साथ वचन में लिखा है ---
शाऊल, जिस पर वह हाथ रखे पाया, और उसे यीशु मसीह के उनके सपने के बारे में बताया। प्रार्थना के माध्यम से, शाऊल, पवित्र आत्मा (V.17) प्राप्त उसकी दृष्टि पाया आ गया और बपतिस्मा दिया गया था (v.18)। शाऊल ने तुरंत सभाओं यीशु का प्रचारकर और कह रही है वह परमेश्वर के पुत्र (v.20) में चला गया है। शाऊल की प्रतिष्ठा को अच्छी तरह से जाना जाता था और लोग, हैरानी और उलझन में थे। यहूदियों ने सोचा कि वह ईसाई (v.21)को दूर लेने के लिए आया था। आज खुद मसीह का हो गया है शाऊल का साहस वृद्धि के लिए में दमिश्क में रहने वाले यहूदियों साबित करना है कि यीशु मसीह (ने v.22) था शाऊल के तर्कों से चकित थे। पौल अपनी गवाही में गलतियों कों लिखा 1:१२-१४
12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13 यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था।
14 और अपने बहुत से जाति वालों से जो मेरी अवस्था के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता था और अपने बाप दादों के व्यवहारों में बहुत ही उत्तेजित था।
( acts 13: 9) इस परिवर्तन के बाद शाऊल के पॉल के रूप में जाना गया। पॉल अरब, दमिश्क, यरूशलेम, सीरिया और अपने पैतृक किलिकिया में समय बिताया है, और बरनबास अन्ताकिया में चर्च में उन लोगों को सिखाने के लिए उसकी मदद ली 11:25)। दिलचस्प है, शाऊल ने फिलिस्तीन के बाहर संचालित इस बहुजातीय चर्च की स्थापना (11: 19-21)। पॉल देर से 40 ईस्वी पॉल नए नियम कि पुस्तकों के कई लिखा में ,तीन मिशनरी यात्रा के अपने पहले ले लिया। अधिकांश
किताबे है
1 और 2 कोरिंथियंस,
गलतियों,
फिलिप्पियों
, 1 और 2 थिस्सलुनीकियों,
फिलेमोन,
इफिसियों,
कुलुस्सियों,
1 और 2 तीमुथियुस
टाइटस
और लिखा था। इन 13 "पत्र" (किताबें) उच्य कोटि कि साहित्य " के लिए और अपने धर्मशास्त्र के प्राथमिक स्रोत हैं। जैसा कि पहले उल्लेख, प्रेरित के काम की पुस्तक से हमें पौलुस के जीवन और समय पर एक ऐतिहासिक कार्य दिखाई देता है। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन का एक भाग रोम ओर दुनिया भर में मसीह यीशु का प्रचार, और महान व्यक्तिगत जोखिम (2 कुरिन्थियों 11: 24-27) पर किया । यह माना जाता है कि पॉल रोम में 60 ईस्वी में एक शहीद की मौत मर गया। में एक बात और बातदू रोम कि चर्च कि नीव पौल के द्वारा ही पड़ी इस बात का प्रमाण बाइबिल में मिलाता है 28:30 और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा॥
इसलिये पौल हमे सबसे उतम सलाह देता है
10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे॥
12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
"(फिलिप्पियों 1: 12-14
एक और जोश कि गवाही पौल 2 ११ :22 कुरिथियो देता है
22 क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ इस्त्राएली हैं? मैं भी हूँ:क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं ?मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं?
23 (मैं पागल की नाईं कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं!अधिक परिश्रम करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार बार मृत्यु के जोखिमों में।
24 पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25 तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र मेंकाटा।
26 मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में;
27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28 और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है।
29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?
30 यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर करूंगा।
31 प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता।
प्रश्न है ?
आज हम पौल के जीवन से सिखा सकते है
परमेश्वर किसी को भी कभी भी बुला सकता है
कि हम केसे भी हो यीशु के राज्य के योग्य हो सकते है
हमे उसके राज्य के लिए अभिषेक मिला है कोए यह नही कह सकता है कि हम ने अभिषेक प्राप्त नही किया है
परमेश्वर के राज्य के लिए हमारा जोश ही हमरी गवाही है