यदि मसीह में कुछ शांति और , प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है 2 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो । मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो |विरोध या झूटी बढाई के लिए कुछ न करो ,पर दीनता से एक दुसरे को अपने से अच्छा समझो हर एक अपने ही हित की नहीं वरन दूसरो के हित भी चिंता करे
मेरा बिषय है being of the same mind
complete my joy by being of the same mind,
तो मेरा आनद पूरा करो कि एक ही मन रखो
में हमेशा एक प्रश्न के साथ शुरू करता हूँ
उस कि इच्छा क्या है?
यीशु कि इच्छा क्या है ?
कलीसिया कि इच्छा क्या है?
पौलुस कि इच्छा है कि मसीह का राज्य बढे |
इसे हम येसु के उदाहरण मे देखते है,कि वह स्वर्ग है रहा कर पृथ्वी पर उसने हमारी सुधि ली ,क्योकि उसने हम से प्रेम किया |
पद 2 – पौलुस हमें एक छोटी से आज्ञा देता है |कि मेरा आनन्द पूरा करो |
पूरा करो एक मानसा रखो
इस पूरा करो का अर्थ क्या है ?
हम इसे इस प्रकार से समझे खानेके बाद बच्चो को दूध का गिलास देते जो पूरा नहीं भरा है वो कहते है ,ऊपर तक भरा हुआ ,उमड़ता हुआ फेलता हुआ |मसीह भी ऐसा चाहता है कि हमारा आनन्द पूरा उमड़ता हुआ हो|थोड़ा नहीं ,पर ऊपर तक ,फैलता हुआ |
फिली 2 :1 -5 लिखा है ,
यदि मसीह में कुछ शांति और , प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है 2 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो । मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो। 3 ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो। 4 तुममें से हर एक को चाहिए कि केवल अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
इस पैराग्राफ को पड़ने मुझे लगा कि यहाँ पर बहुत सि चीजे है जो सब को मिलकर एक भोजन जैसी लगती है ,दवा है लगती |जो थोड़ा थोडा मिलकर एक बनी है |
यदि मसीह में कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
, यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
कोई ध्यान दीजिए So if there is
any encouragement in Christ,
any comfort from love,
any participation in the Spirit,
any affection and sympathy, 2
complete my joy by being of the same mind, having the same love, being in full accord and of one mind.3 Do nothing from selfish ambition or conceit, but in humility count others more significant than yourselves. 4 Let each of you look not only to his own interests, but also to the interests of others. 5 Have this mind among yourselves, which is yours in Christ Jesus,
यदि मसीह मे कुछ है तो सब को मिला कर एक ही मन रखो |इन पदों मे हम पते है एक जीवन जीने का तरीका |इसे पौलुस जीवन कि रौशनी देखता है | तो हमारे भी यह जरुरी है कि हमारे जीवन जीने के तथ्य स्पस्ट है|
हमारे जीवन जीने तरीका, यदि सुसमाचार के अनुसार है, तो सचमुच हमारा जीवन ,इस संसार मे एक आदर्श जीवन का नमूना हो सकता है |
पद 27 किन्तु हर प्रकार से ऐसा करो कि तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के अनुकूल रहे। जिससे चाहे मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हें देखूँ और चाहे तुमसे दूर रहूँ, तुम्हारे बारे में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में दृढ़ता के साथ स्थिर हो और सुसमाचार से उत्पन्न विश्वास के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रहे हो
मै आशा करता हूँ कि हम इसा ही जीवन को जिएगे मेरा विषय भी यही है being of the same mind एक ही माणसा
यदि मसीह में है तो कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
इससे पहिले हमे अपने आप को सुसमाचार के अनुसार जीना होगा |इसलिये पौलुस हमें लिखता है जब हमारी योग्यता नही थी तब हमे मसीह ने चुना
1 कुरिथियो 1:27 – 28
बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों। परमेश्वर ने जगत से हमे चुना कि हम जगत के लिया नमूना हो एक आदर्श हो,
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके।
पद के अनुसार हमारा चाल चलन सुसमाचार के अनुसार होना चाहिए| जिससे विरोधीयो को यह अवसर नहीं मिले जो कि हम मसीह के राज्य के योग्य नहीं है
परमेश्वर के लोगो को सुसमाचार के बाहर कुछ नहीं है एसलिये हमें प्रतिबद्धता कि साथ चलने कि जरुरत है |ऐसा करने के लिये हम खुद विचार कर सकते है |कि यह कैसे बिशेष है ?
पहला तरीका ---जो हमें संसार से अलग करता है?
संसार के लोग आमिर होने प्रयास करते है ,आरामदायक जीवन जीने का प्रयास करते है |ऐसा के विरुद्ध हम अपने मसीह को संसार मे पेश करते है ,कि हमारे उधारकर्ता का आदर्श उन्हें मिले , ऐसा इच्छा जीवन प्रभावित करे |हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम है अपने आप को प्रस्तुत करने का पहला नियम हैं |
दूसरा तरीका ----इस तरह सुसमाचार के योग्य खुद को प्रस्तुत करने का हमारा लक्ष्य है | चर्च कि एकता एक स मन हम मसीह जीवन जीने के लिये ,प्रस्तुत करने के लिये ,मसीह रूप मे किया जाना चाहिय |यह दूसरा तरीका है कि सुसमाचार कि दृष्टिकोण से मसीह एकता महत्पूर्ण है यही मार्ग है |
फिली 2:1-4 इन पदों मे कोए साधारण फार्मूला नहीं है कि एक दिन मे हो जायेगा ऐसा नहीं है ,इसे हर दिन के जीवन मे खोजा जा सकता है कि सुसमाचार कि योग्य जीवन – सुसमाचार के योग्य फल मिलेगा | क्योकि संसार एकता खोज को रहा है |हम एक आशा से देख रहे है कोए तो हमारे साथ संगति मे खड़ा हो
हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम एक ही मनसा खोजते है |
बाइबिल हमें इस का मार्ग दिखाती है
जीने का तरीका बताती है ? कि वह मसीह का सुसमाचार है इसमे एकता मे सफलता के साथ ज्यादा से ज्यादा आशा है |
ऐसा कारण पौलुस कि छोटी आज्ञा फिलियो कि चर्च दि आज हम से यही प्रश्न है ?बाइबिल भी हमें सिखाती है यदि मसीह मे
कुछ शांति
कुछ प्रेम
कुछ सहभागिता
कुछ करुना
कुछ दया
इन मे से कुछ भी है ,तो इसे हम प्रथम स्थान के लिया शब्द है कुछ
वह मसीह उद्देश्य पूरा होगा | एक मन शब्द को फिलियो के ऐसा भाग मे दस बार प्रयोग हुआ और पौलुस कि द्वारा २३ बार जब कि पुरे नया नियम मे 26 बार ही प्रयोग हुआ |
इस कुछ को करने के हम कैसे जीते है ? एक मन के लिय, हम कैसे कार्य करते है ? वह कौनसा वचन है ? रोमियो कि पत्री 8:4-6
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
5 क्योंकि वे जो अपने भौतिक मानव स्वभाव के अनुसार जीते हैं, उनकी बुद्धि मानव स्वभाव की इच्छाओं पर टिकी रहती है परन्तु वे जो आत्मा के अनुसार जीते है, उनकी बुद्धि जो आत्मा चाहती है उन अभिलाषाओं में लगी रहती है। 6 भौतिक मानव स्वभाब के बस में रहने वाले मन का अन्त मृत्यु है, किन्तु आत्मा के वश में रहने वाली बुद्धि का परिणाम है जीवन और शान्ति।
यदि हमें कुछ याद करना है तो याद करे बचपन याद किया पद गलतियों 5:22 आत्मा के फल --- आत्मा,का फल प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, 23 नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है।
फिर कहता ---वह है एक मन रहो
कुरिन्थियों के कलीसिय में फुट कि समस्या थी जो पौलुस ने सुनी तब उन को एक आज्ञा दि जिसे कुरंथियो के कलीसिया ने सुना |
1 कुरन्थी 1 :10
10 हे भाईयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मेरी तुमसे प्रार्थना है कि तुम में कोई मतभेद न हो। तुम सब एक साथ जुटे रहो और तुम्हारा चिंतन और लक्ष्य एक ही हो।
तो मुझे पूरी तरह प्रसन्न करो। मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एका रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
एक जैसा ही लक्ष्य –हमारा लक्ष्य सिर्फ यीशु मसीह है वो बड़े मे घटू ,यही सोच होनी चाहिए
मै आज मसीहो से ,जो प्रभु के है एक प्रायस कि उमीद करता हूं कि हम सब एक चीज करे फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे सोचे यदि हम कुछ कर सकते है तो कुछ कर दीजिए
यदि मसीह में कुछ शांति और प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है
2 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो ।
मैं चाहता हूँ, हम सब बाइबिल तरह देखे -- एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
हम सीखे कि एक मन से बहुत कुछ कर सकते है
एक मन से कि गाइ प्राथना सुनी जाती है |
इस के उदाहरण बाइबिल मे है फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे कुछ
मेरा बिषय है being of the same mind
complete my joy by being of the same mind,
तो मेरा आनद पूरा करो कि एक ही मन रखो
में हमेशा एक प्रश्न के साथ शुरू करता हूँ
उस कि इच्छा क्या है?
यीशु कि इच्छा क्या है ?
कलीसिया कि इच्छा क्या है?
पौलुस कि इच्छा है कि मसीह का राज्य बढे |
इसे हम येसु के उदाहरण मे देखते है,कि वह स्वर्ग है रहा कर पृथ्वी पर उसने हमारी सुधि ली ,क्योकि उसने हम से प्रेम किया |
पद 2 – पौलुस हमें एक छोटी से आज्ञा देता है |कि मेरा आनन्द पूरा करो |
पूरा करो एक मानसा रखो
इस पूरा करो का अर्थ क्या है ?
हम इसे इस प्रकार से समझे खानेके बाद बच्चो को दूध का गिलास देते जो पूरा नहीं भरा है वो कहते है ,ऊपर तक भरा हुआ ,उमड़ता हुआ फेलता हुआ |मसीह भी ऐसा चाहता है कि हमारा आनन्द पूरा उमड़ता हुआ हो|थोड़ा नहीं ,पर ऊपर तक ,फैलता हुआ |
फिली 2 :1 -5 लिखा है ,
यदि मसीह में कुछ शांति और , प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है 2 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो । मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो। 3 ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो। 4 तुममें से हर एक को चाहिए कि केवल अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
इस पैराग्राफ को पड़ने मुझे लगा कि यहाँ पर बहुत सि चीजे है जो सब को मिलकर एक भोजन जैसी लगती है ,दवा है लगती |जो थोड़ा थोडा मिलकर एक बनी है |
यदि मसीह में कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
, यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
कोई ध्यान दीजिए So if there is
any encouragement in Christ,
any comfort from love,
any participation in the Spirit,
any affection and sympathy, 2
complete my joy by being of the same mind, having the same love, being in full accord and of one mind.3 Do nothing from selfish ambition or conceit, but in humility count others more significant than yourselves. 4 Let each of you look not only to his own interests, but also to the interests of others. 5 Have this mind among yourselves, which is yours in Christ Jesus,
यदि मसीह मे कुछ है तो सब को मिला कर एक ही मन रखो |इन पदों मे हम पते है एक जीवन जीने का तरीका |इसे पौलुस जीवन कि रौशनी देखता है | तो हमारे भी यह जरुरी है कि हमारे जीवन जीने के तथ्य स्पस्ट है|
हमारे जीवन जीने तरीका, यदि सुसमाचार के अनुसार है, तो सचमुच हमारा जीवन ,इस संसार मे एक आदर्श जीवन का नमूना हो सकता है |
पद 27 किन्तु हर प्रकार से ऐसा करो कि तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के अनुकूल रहे। जिससे चाहे मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हें देखूँ और चाहे तुमसे दूर रहूँ, तुम्हारे बारे में यही सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में दृढ़ता के साथ स्थिर हो और सुसमाचार से उत्पन्न विश्वास के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रहे हो
मै आशा करता हूँ कि हम इसा ही जीवन को जिएगे मेरा विषय भी यही है being of the same mind एक ही माणसा
यदि मसीह में है तो कोई उत्साह है
प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है
यदि आत्मा में कोई भागेदारी है
स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
इससे पहिले हमे अपने आप को सुसमाचार के अनुसार जीना होगा |इसलिये पौलुस हमें लिखता है जब हमारी योग्यता नही थी तब हमे मसीह ने चुना
1 कुरिथियो 1:27 – 28
बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों। परमेश्वर ने जगत से हमे चुना कि हम जगत के लिया नमूना हो एक आदर्श हो,
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके।
पद के अनुसार हमारा चाल चलन सुसमाचार के अनुसार होना चाहिए| जिससे विरोधीयो को यह अवसर नहीं मिले जो कि हम मसीह के राज्य के योग्य नहीं है
परमेश्वर के लोगो को सुसमाचार के बाहर कुछ नहीं है एसलिये हमें प्रतिबद्धता कि साथ चलने कि जरुरत है |ऐसा करने के लिये हम खुद विचार कर सकते है |कि यह कैसे बिशेष है ?
पहला तरीका ---जो हमें संसार से अलग करता है?
संसार के लोग आमिर होने प्रयास करते है ,आरामदायक जीवन जीने का प्रयास करते है |ऐसा के विरुद्ध हम अपने मसीह को संसार मे पेश करते है ,कि हमारे उधारकर्ता का आदर्श उन्हें मिले , ऐसा इच्छा जीवन प्रभावित करे |हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम है अपने आप को प्रस्तुत करने का पहला नियम हैं |
दूसरा तरीका ----इस तरह सुसमाचार के योग्य खुद को प्रस्तुत करने का हमारा लक्ष्य है | चर्च कि एकता एक स मन हम मसीह जीवन जीने के लिये ,प्रस्तुत करने के लिये ,मसीह रूप मे किया जाना चाहिय |यह दूसरा तरीका है कि सुसमाचार कि दृष्टिकोण से मसीह एकता महत्पूर्ण है यही मार्ग है |
फिली 2:1-4 इन पदों मे कोए साधारण फार्मूला नहीं है कि एक दिन मे हो जायेगा ऐसा नहीं है ,इसे हर दिन के जीवन मे खोजा जा सकता है कि सुसमाचार कि योग्य जीवन – सुसमाचार के योग्य फल मिलेगा | क्योकि संसार एकता खोज को रहा है |हम एक आशा से देख रहे है कोए तो हमारे साथ संगति मे खड़ा हो
हमारे परिवार मे ,हमारे पड़ोस मे ,हमारे कार्य स्थल मे ,जंहा हम एक ही मनसा खोजते है |
बाइबिल हमें इस का मार्ग दिखाती है
जीने का तरीका बताती है ? कि वह मसीह का सुसमाचार है इसमे एकता मे सफलता के साथ ज्यादा से ज्यादा आशा है |
ऐसा कारण पौलुस कि छोटी आज्ञा फिलियो कि चर्च दि आज हम से यही प्रश्न है ?बाइबिल भी हमें सिखाती है यदि मसीह मे
कुछ शांति
कुछ प्रेम
कुछ सहभागिता
कुछ करुना
कुछ दया
इन मे से कुछ भी है ,तो इसे हम प्रथम स्थान के लिया शब्द है कुछ
वह मसीह उद्देश्य पूरा होगा | एक मन शब्द को फिलियो के ऐसा भाग मे दस बार प्रयोग हुआ और पौलुस कि द्वारा २३ बार जब कि पुरे नया नियम मे 26 बार ही प्रयोग हुआ |
इस कुछ को करने के हम कैसे जीते है ? एक मन के लिय, हम कैसे कार्य करते है ? वह कौनसा वचन है ? रोमियो कि पत्री 8:4-6
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
5 क्योंकि वे जो अपने भौतिक मानव स्वभाव के अनुसार जीते हैं, उनकी बुद्धि मानव स्वभाव की इच्छाओं पर टिकी रहती है परन्तु वे जो आत्मा के अनुसार जीते है, उनकी बुद्धि जो आत्मा चाहती है उन अभिलाषाओं में लगी रहती है। 6 भौतिक मानव स्वभाब के बस में रहने वाले मन का अन्त मृत्यु है, किन्तु आत्मा के वश में रहने वाली बुद्धि का परिणाम है जीवन और शान्ति।
यदि हमें कुछ याद करना है तो याद करे बचपन याद किया पद गलतियों 5:22 आत्मा के फल --- आत्मा,का फल प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, 23 नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है।
फिर कहता ---वह है एक मन रहो
कुरिन्थियों के कलीसिय में फुट कि समस्या थी जो पौलुस ने सुनी तब उन को एक आज्ञा दि जिसे कुरंथियो के कलीसिया ने सुना |
1 कुरन्थी 1 :10
10 हे भाईयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मेरी तुमसे प्रार्थना है कि तुम में कोई मतभेद न हो। तुम सब एक साथ जुटे रहो और तुम्हारा चिंतन और लक्ष्य एक ही हो।
तो मुझे पूरी तरह प्रसन्न करो। मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एका रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
4 जिससे कि हमारे द्वारा, जो देह की भौतिक विधि से नहीं, बल्कि आत्मा की विधि से जीते हैं, व्यवस्था की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकें।
एक जैसा ही लक्ष्य –हमारा लक्ष्य सिर्फ यीशु मसीह है वो बड़े मे घटू ,यही सोच होनी चाहिए
मै आज मसीहो से ,जो प्रभु के है एक प्रायस कि उमीद करता हूं कि हम सब एक चीज करे फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे सोचे यदि हम कुछ कर सकते है तो कुछ कर दीजिए
यदि मसीह में कुछ शांति और प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई सहभागीता है, कुछ करुणा और दया है
2 तो मेरा आनद पूरा करो कि एक मन रहो ।
मैं चाहता हूँ, हम सब बाइबिल तरह देखे -- एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एक मनसा रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
हम सीखे कि एक मन से बहुत कुछ कर सकते है
एक मन से कि गाइ प्राथना सुनी जाती है |
इस के उदाहरण बाइबिल मे है फिलीपि 2:2 चेक लिस्ट है हम देखे कुछ